हमरे बिहारी भैया
हमारे बिहारी भैया बिहार से सीधे बम्बई पोस्टिंग पा गये।अब बम्बई जैसा शहर ,एक ही नजर में उनको तो बम्बई से लेकर चौपाटी तक सब ही घूम गया।मारे खुशी के फूले नहीं समाते ,सो अम्मा से जाके बोल दिऐ ….
“देखो अम्मा तोहार पतोहू को हम लेके जाव। देखो बता दिऐ हैं तुमका पहिले ही से ,जे तुम्हरी ना नुकुर से हम तंग आ गये हैं। अरे बम्बई पोस्टींग पाये हैं , हमरी कौनो इज्जत है के नाहीं। अरे हमरे स्टाफ वाले सब का सोचेंगे, कैसा बेपढ़ा है जे, और ऊपर से जे सोचेंगे कि एक ते गाँव के हैं और कोऊ गरीब घर के हैं। तुम समझे करब, जब चार लोग हमरे आगे पीछे साहब साहब करके बोलबा तौ हमरी त छातीय फूल जाब मारे खुसी के। देखो बता दिये हैं पहिले से ही..
बिचारी अम्मा कभी चूल्हे को देखती कभी लड़के को, बोली …अब तूम्हार जौन मरजी बा सो तू करिबो, तोहार लुगाई हमें का…….
अब जो जो सामान बटोर पाये बटोर पहुँच गये बम्बई मा। भैया पहिले ही बता दिये थे भौजी के कि जे बिहारी त बोलबे न करी बम्बई मा, नई ते मार मार सुजा देब।सो भौजी त पहिले ही डरा गई, बिचारी, कोई मिलने आऐ तो बिचारी चुप ही रह जाती। भाभी जी बहुत कम बोलती हैं। बिहारी बाबू खुश , इसी को कहते हैं आम के आम और गुठलियों के दाम।
अब भैया गये आफिस और भाभी पहुँची बिल्डिंग में, खूब दोस्ती, भैया बड़े खुश यहाँ बम्बई में कौन जाने कि बिहारी हैं या बंगाली। अब रोज़ नई नई बातें, नई नई फरमाइश और बहुत ज्यादा हो तो सीधा सा एक वाक्य भाभी खूब सीख गई थी, अरे हमारी भी तो कोनो इज्जत है के नाहीं। भैया बोलते हा ठीक वा और भाभी, साड़ी से सूट और सूट से सीधे जीन्स में और वही डायलॉग, हमरी भी कोनो इज्जत है की नाहीं।
अब तो एक ही चीज़ की जिद सब पढ़ी लिखी औरतें जीन्स पहनती हैं और उन्हें सब बेपढ़ा कहेगें आखिर उनकी इज्जत है की नाहीं। भैया बोल दिऐ अबके महीने की जो तनख्वाह मिले तो वो जो चाहे खरीदें। अब बम्बई की महँगाई, जैसे तैसे ले दे के अपने लिये एक टैब खरीद पाये , भाभी को भी सिखा दिये। अब तो भाभी जहाँ जायें टैब साथ और उस पर मज़े की बात ये कि बिल्डिंग की दूसरी औरतों के सामने अगर कोई मैसेज टोन आ जाये तब तो जैसे सोने पे सुहागा। फिर तो फेसबुक और बाहट्स अप के विषय में ऐसी ऐसी जानकारियाँ भाभी बिल्डिंग की औरतों के बीच बाँटा करें कि बिल गेट्स को भी अपने बजूद पे शर्म आ जाये।
अब एक दिन हुआ यूँ कि भैया टैब पे काम करते करते जल्दी में आफिस निकल गये। अब आफिस से जल्दी घर आना सम्भव नहीं, आफिस बहुत दूर था।जल्दी से फोन किये भाभी को कि कापी पेस्ट कर के भेज दें। भाभी क्यों कि नया नया एफ एम सुनना सीखीं थीं सुन बैठी टैब और पेस्ट कर देना , पूरे टैब को ढंग से पेस्ट लगाया और इन्तज़ार करने लगीँ कि भैया बताएं कि फाइल पहूँची की नहीं। इतनी देर में उनकी सहेलियां आ गई तो चली गई शॉपिंग पे। शाम को लौटी तो भैया पहिले ही से ताव खाये बैठे थे। मगर भाभी घर लौटी तो संध्या जी को साथ लिये।अब संध्या जी को देख के भैया का दिल भैया के पास कहां रुकता था। खूब बातें हुई, सारी शापिंग सामने रख दी गई। अब जो संध्या जी जो कहें, भैया पीछे पीछे। हाँ हाँ संध्या जी बिल्कुल ठीक किये आप ! खैर संध्या जी के जाने के बाद भाभी बोलीं अरे कैसे इंसान हो जी, आज हम कितना परेशान हो गए, फाइल पाए कि नहीं, बतावल काहे नाहीं। देखो !!पूरा ढंग से पेस्ट किये हैं।
अब भैया ने जो टैब देखा तो काटो तो खून नहीं, एक तो पहिले ही भाभी आधी तन्ख़्वाह उड़ा आई शापिंग में और दूसरा ई नुकसान। पूरा टैब कोलगेट की चमकार से चमक रहा था. सर पकड़ के रह गए भैया जी…
और भाभी अपनी ही धुन में, ‘अरे हम कछु पूँछ रहीं हैं , जबाब काहे न देब, पूरे सठिया गये हो, पूरे अपनी अम्मा पे गये हो. कौनो बात का सीधा जबाब तुम्हरे पास हइये नाहीं….’
भैया के मन में हूक उठी की बुक्का फाड़ के रोएँ. … लेकिन तभी डोर वेल बजी, और फिर से संध्या जी सामने और हमरे भैया …….खी खी खी खी………..
बहुत अच्छा लगा .
जी शुक्रिया ! थोड़ा बहुत बिहारी भाषा का प्रकार स्वरूप आया है हास्य को गति देने के लिये लिखते समय अच्छा लग रहा था , इसलिये बना रहने दिया ,आप सभी को अच्छा लगा तो लग रहा है मेहनत सफल हो गई ………शुक्रिया……..:)
वास्तव में मौलिक भाषा और बोली के साथ ही किसी बात का आनंद आता है. खड़ी बोली में वह बात नहीं आती.
बहुत अच्छा व्यंग्य !
हौसलाअफजाई के लिये बहुत बहुत धन्यवाद आपका !