कविता : दहेज़ – २
बहू ने जैसे ही घर में कदम रखा
सास बोली-
बेटी गहने जेवर उतार दो
आजकल घर वालों पर भी भरोसा नहीं
शादी ब्याह का घर है
कहीं कुछ खो न जाये
बहू बोली-
मांजी, दूसरों की बारी तभी आएगी
जब मेरे पीहर से कुछ न देने पर
आग की लौ घर से बाहर जाएगी!
कविता का विषय अच्छा है, लेकिन पूरी तरह समझ में नहीं आई.