कविता : दहेज़ विरोधी मोर्चा
एक बार सेठ के पास
एक युवक आया
आते ही पानी पिया
कहते हुए मुस्कराया
सेठ जी-
हम दहेज विरोधी मोर्चा कर रहे हैं शुरू
हमने मिलकर है ये सोचा
आप संभालें यह मोर्चा
आपके भी हैं तीन बेटियां
नहीं देनी उन्हें दहेज पेटियां
सेठ जी बड़ी शान से बोले-
तुमने भी तो ये फैसला
शादी के बाद है अपनाया
कंधे पर उसके हाथ रखकर
अच्छी तरह समझाया
मैं मोर्चा फिर संभालूंगा
पहले बेटों की शादी कर डालूंगा
सोच रहा था मैं ये कब से
कि कन्यादान करने से पहले
दहेज विरोधी मोर्चा अपना लूंगा
हा….हा….हा…. बढ़िया. आपने दहेज़ विरोधी दिखावे की पोल खोलकर रख दी है.