बाल दिवस
ठिठुरते गुलाबी जाडे मेँ
नन्हे हथेलियोँ से
धोते हुए
झूठे चाय के गिलास मेँ
वह ढूँढ़ता है
गर्म चाय की ऊष्मा
काश
थोड़ी गर्माहट मिल जाती
इस कंपकंपाते हाथोँ को
बूढ़ा मालिक जब चिल्लाता है
उस पर
‘तेज तेज हाथ चला’
वह देख रहा होता है
टी वी पर
बाल दिवस का मनाया जाना . . .
— सीमा संगसार
बाल दिवस , बकवास है . छोटे छोटे बच्चों को होटलों में जूठे बर्तन साफ़ करने का कोई शौक नहीं है , उनके माँ बाप की मजबूरी है . जब तक गरीबों की आर्थिक हालत में सुधार नहीं आता और यह बच्चे सकूल नहीं जाते तब तक यह बाल दिवस एक जोक है .
बहुत ही करारा व्यंग्य सत्यता के साथ!
बहुत करारी व्यंग्य कविता. बाल दिवस मनाना हमारे लिए केवल दिखावा और पाखंड है. जब तक सभी बच्चे विद्यालय नहीं जाते, तब तक यह दिवस मनाना व्यर्थ है.