कविता : कुछ कहती हैं ये आँखें
कुछ कहती है बहुत सहती है ये आँखें
खुली हो तो ठीक पर बन्द होने पर सबको रुलाती है ये आँखें
यूँ बिछड़ों को मिलने को
यूँ प्यार से देखने को
रात रात भर जागती है ये आँखें
कुछ कहते है बहुत सहती है आँखें
यूँ प्यार में डूबने को
प्रिय का दीदार करने को
तकरार होने पर अकेले ही रोती है ये आँखें
कुछ कहती है बहुत सहती है ये आँखें
कुछ चुभने पर नम होती है
छिप छिप कर शर्माति है
वो सामने आने पर धीरे से मुस्कुराती है ये आँखें
कुछ कहती है…….”
— मयूर जसवानी
Mai to sirf iitna hi kahna chata hu..
Kuch shabdo me aap sub ka aabhar prdarhit krne ka prayas karta hu…..
“Phoolon ke sang rahe raha,
Mai matti ka dher,
Muj mei bi bas jayegi,
Khushbu der sawer..!”
Thanks to all.
अच्छी कविता, मयूर जी.
Thanks vijay sir ji.
By the deep of my heart.
Mai to eek samany sa bacha hu..
Aapne muje aapni patrika me sthan diya.
Aur aapko meri kavita b achi lagi..
Wo to mera saubhagy he.
Than you again.
भाव-भंगिमा की अच्छी कविता
Thank you madam ji.
Namskar.
कविता अच्छी लगी .
Thanks sir ji.