कविता

हम से ही है स्रष्टि सारी

हमने ही बनाई यह सृष्टि
हम ही है पिछड़े
हमने ही सिखाया चलना
हमे ही अब सिखा रहें
हम मौन है तो
समझो नहीं कमजोर
रह पाओगें क्या हम बिन
सोचो दें दिमाक पर जरा जोर
जीवन होगा छिन्न-भिन्न
मन भी अक्सर रहेगा खिन्न|

माँ-बहन-पत्नी
सब रूप है मेरे
तुम खुद से चल पाओ
ऐसे कर्म नहीं तेरे
हमसे ही है तेज तुम्हारा
हमसे ही गरिमा बनी
सिखा-सिखा हारी तुमको
कमजोर नहीं हैं नारी
हम से ही हैं सृष्टि सारी
पड़ते हैं हम सब पर भारी|
सब सुखद हैं सपन सा सुहाना
फिर भी सब कुछ ही हैं अपना
विसंगतियों के साथ हमको
अब यूँ नहीं जीवन यापन करना|| …सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “हम से ही है स्रष्टि सारी

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता, बहिन जी.

Comments are closed.