कविता
जग की है ये अद्भुत रीत
होती है कब भी बिन प्रीत
पाया मैंने मन का मीत
केवल उसके मन को जीत
2
चमेली के फूल सी महकती
घर की बेटी सदा चहकती
सुरभित करती कोना कोना
अपनी मुक्त हँसी बिखेरती
3
दिल के अहसास को ना अनदेखा करो
अपनेपन के भाव को तुम देखा करो
निश्छल निस्वार्थ प्रेम की कद्र हो हमेशा
बेवफाई के फन को खुले दृग देखा करो
4
वृद्धावस्था में रखे माँ बापू का ध्यान
दोनों जग में ईश सम कहना मेरा मान
कहना मेरा मान सफल तूं जीवन करले
देंगे ईस अशीष तूं खली झोली भर ले
5
किस्मत की रेखा का किसके पास है लेखा
बनते बिगड़ते कईयो को हमने भी है देखा
है माया सब लेख की क्यूँ पीटता है लकीर
राजा बनते रंक आमिर को फकीरी में देखा
shanti purohit
आभार गुरमेल भाई साहब जी
आभार विजय कुमार भाई जी
बहुत अच्छी लगी .
अच्छी कवितायेँ !