कविता

सरकारी स्कूल के बच्चे

फटी जेबोँ मेँ
संभाल कर रखी
कुछ रेजगारियोँ की
खनक
आश्वस्त करता है
इन्हेँ
अपनी छोटी छोटी
ख्वाहिशेँ पूरी होने की!!!
चंद सिक्कोँ मेँ ही
ये खरीद लेना चाहते हैँ
अपने सारे सपने . . .

छलांगे लगाते
इनका बचपन
हिलोरे मारता हुआ
तेजी से बढ़ता है
आभावोँ को पैबंद मेँ छिपाते हुए
बहुत जल्दी सयाने हो जाते हैँ
सरकारी स्कूल के बच्चे . . .

— सीमा संगसार

सीमा सहरा

जन्म तिथि- 02-12-1978 योग्यता- स्नातक प्रतिष्ठा अर्थशास्त्र ई मेल- [email protected] आत्म परिचयः- मानव मन विचार और भावनाओं का अगाद्य संग्रहण करता है। अपने आस पास छोटी बड़ी स्थितियों से प्रभावित होता है। जब वो विचार या भाव प्रबल होते हैं वही कविता में बदल जाती है। मेरी कल्पनाशीलता यथार्थ से मिलकर शब्दों का ताना बाना बुनती है और यही कविता होती है मेरी!!!

One thought on “सरकारी स्कूल के बच्चे

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता. आपकी बात में दम है.

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