कविता

कुंडलिया छंद

जनता अपनी रो रही, नेता करते लूट।

सत्ता अपनी सो रही, चोर पा गए छूट॥

चोर पा गए छूट, घोटाला निस दिन करे।

देश को रहे नोच, गरीब घुट-घुट कर मरे॥

कह दिनेश कविराय, त्याग बिन काम न बनता।

जब अपने पर आय, तभी जागे है जनता॥

 

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

2 thoughts on “कुंडलिया छंद

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कुंडली !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब , किया बात है .

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