पर्दाफ़ाश
पर्दाफ़ाश
हैं गद्देदार तकियों पर सोते,
हैं कलंगीदार कपड़े पहनते,
हैं खुशबूदार जल से नहाते,
हैं लगातार खून चूस पीते।
पर्दाफ़ाश………
हैं धूलदार सीढ़ियों पर सोते,
हैं थिगलीदार कपड़े पहनते,
हैं बदबूदार पानी से नहाते,
हैं लगातार खून-पसीना बहाते।
पर्दाफ़ाश………
नाचते गाते खिलते फूलते,
झूमते झूलते सजते सँवरते,
पाते कमाते बढ़ते उठते,
गरजते पीटते डराते चूसते।
पर्दाफ़ाश………
लँगड़ाते रोते मुरझाते हाँफते,
रेंगते सिकुड़ते तपते सड़ते,
खोते गँवाते घटते गिरते,
चीखते मरते डरते बहाते।
पर्दाफ़ाश………
बहुत अच्छी कविता. आपने इसमें आज की विषमताओं का सुन्दरता से चित्रण किया है.
धन्यवाद सिंघल जी।