कविता

यूं याद ना आया करो..

बस यू न तङपाया करो
इस दिल को भी समझाया करो
छुप छुप के रोता है हरवक्त
यूं याद न आया करो…
महफिल सूनी लगती है
बस तेरी कमी ही खलती है
हमें छोड़ न जाया करो
यू याद न आया करो
दिवानी बनके जीती हू
सिर्फ गमो के आंसू पीती हू
कभी हसके बुलाया करो
यूं याद न आया करो
लम्हा लम्हा उदासी है
जो मुझमे सजा सी है
उसे न आजमाया करो
यूं याद न आया करो
मुश्किल है अब जीना
जहर जुदाई का पीना
कुछ हाले दिल जताया करो
यूं याद न आया करो

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने [email protected]

One thought on “यूं याद ना आया करो..

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता.

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