तांका- “फूल और उपवन”
पुष्प महक,
उपवन गुलाब,
रंग-बिरंगा,
भौंरा हो मदमस्त,
खेले कलियों संग।
बिखरी छटा,
चमन खिल गया,
संग दिनेश,(सूर्य)
कलियाँ हैं हर्षित,
खिल सुमन हुई।
चमकी निशा,(रात्रि)
देखकर चाँदनी,
संग सुमन,
महक उठा सर्व,
रात रानी के संग।
चारों तरफ,
शहनाई श्मसान,
रात्रि-दिवस,
पुष्प देता सम्मान,
राजा-रंक समान।
दिनेश”कुशभुवनपुरी”
बढ़िया तांका !