“जिया जाता नहीं”
“दिन गुजर जाता है पर रात में जिया जाता नहीं,
फोन कल तक आता था उनका,अब आता नहीं,
वो हँसी रातें हमने भी काटी है गाना सुनते और सुनाते,
अब दिल सिर्फ दर्द बयां करता है पर गाता नही।
मैं अपनी बातें उस तक पहुँचाता हूँ पर उससे कहता नहीं,
दर्द इसलिए अपने पास रखता हूँ वो नाजुक है सहता नहीं,
वो अपनी हद में रहकर मुझमें जिंदा है आज भी,
वो मेरे दिल से आँख तक आ जाता है पर बहता नहीं।
अब अँधेरों में है जिंदगी मेरी,जहर भी दिखता नहीं,
कहाँ गई सुबह और शाम वो दोपहर भी दिखता नहीं,
सिर्फ तेरे ही ख्वाब मंडराते है मेरी आँखों में आज भी,
मैं क्या हूँ,कौन हूँ,कहा से हूँ,वो शहर भी दिखता नहीं”
वाह वाह !
अच्छी कविता ,