लघुकथा

नारी की पीड़ा

 नारी निकेतन की संचालिका आभा के पास एक औरत आयी, जिद कर रही थी  उसे यहाँ नहीं रहना,  उसका पति उसे बहुत प्यार करता है उसे लेने जरुर आएगा| कमला, नाम था, उसका पति शहर घुमाने लेकर आया था| जब वो दुकान से चुडिया खरीद रही थी, पति मौका पाकर उसे वहीं छोड़ गया|

रात भर पति के इन्जार मे बैठी रही| दो दिन तक वो नहीं आया| दो दिन तक कुछ भी पेट में नहीं जाने से कमला बेहोश हो गयी| आभा ने उसे देखा तो  यहाँ ले आयी |

ज्यादा कहने पर कमला के पति को खोज कर अपनी पत्नी को आश्रम से घर ले जाने के लिए बोला| उसने कहा दो दिन से घर से बाहर पराये लोगो के साथ रही औरत की मेरे घर में कोई जगह नहीं है|

दस साल बाद कमला का पति लुटा-पिटा सा उसके पास आया चलो कमला घर चलो|, कमला ने कहा वो कमला अपने पति के दोगले व्यवहार के कारण मर गयी है| तुम्हारे सामने कमला है वो जिन्दा लाश है जो किसी की भी पत्नी नहीं हो सकती,तुम जा सकते हो|

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

3 thoughts on “नारी की पीड़ा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अज की औरत जाग रही है , मर्दों को सोच लेना चाहिए . जब हम इंग्लैण्ड में आये थे तो गोरे लोगों के तलाक देख कर हम हैरान हो जाते थे कि यह लोग इतनी जल्दी तलाक कियों ले लेते हैं . आज हमें समझ आ गिया है कि वोह सही हैं . जो शख्स इस्त्री हो या मरद , अगर शादी करके साथ नहीं निभा सकता तो तू इधर और मैं इधर ही सही रास्ता है .

  • महेश कुमार माटा

    Bilkul sahi sandesh diya hai ji apne . Aaj ke samay me isi hosle or sakhti ki avashyakta h. Samaaj me samanta or nyaypoorn vatavaran tabhi bnega jab galat karne valo ko uska dand dia jaay or uski galati ka ahsaas dilaya jaay.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी लघुकथा ! अगर सभी महिलाओं में ऐसी हिम्मत हो, तो पुरुषों को अन्याय करने से पहले हज़ार बार सोचना पड़ेगा.

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