बाल कहानी : ‘जिम्मेदारी हम सभी की’
जंबो हाथी नल के नीचे नहा रहा था।
चूंचूं चूहा चिल्लाया-‘‘अरे! अरे! जंबो दादा। यह क्या कर रहे हो?’’ जंबो हाथी ने चूंचूं चूहे को घूर कर देखा। फिर नहाते हुए बोला-‘‘देख नहीं रहा है। नहा रहा हूं। दर्जनों बाल्टी पानी डाल चुका हूं। गर्मी है कि लगती ही जा रही है। ’’
‘‘यही तो मैं कह रहा था कि क्या कर रहे हो। जब गर्मी है तो गर्मी लगेगी ही। दर्जनों बाल्टी पानी बेकार नहीं बहा रहे हो? इतने पानी से हजारों पक्षियों का नहाना हो जाता। चलो पहले कपड़े पहनो फिर बात करते हैं।’’
जंबो की सूंड हवा में ही रुक गई। उसने सूंड से पकड़ी बाल्टी को नल के नीचे रख दिया। नल का पेंच खुला था। बाल्टी भरने के बाद भी पानी नीचे गिर रहा था।
चूंचूं चूहा बोला-‘‘और ये देखो। पेंच खुला है। पानी बेकार बह रहा है। पहले नल का पेंच बंद करो।’’ जंबों ने पेंच को कस कर बंद कर दिया। फिर वह चूंचूं से बोला-‘‘हां अब बोलो।’’
चूंचूं चूहा बोला-‘‘बोलना क्या है। नहाने के लिए आपकों तालाब में जाना चाहिए। नल का पानी कितना बेकार बहा दिया।’’
‘‘एक मेरे अकेले पानी बहाने से क्या फर्क पड़ता है।’’ ‘‘फर्क तो पड़ता है भाई।’’ ‘‘मतलब?’’ ‘‘मतलब यही है कि तुम्हारे जैसे कई होंगे जो नहाने के बहाने ढेरों लीटर पानी बहा देते हैं। वहीं कईयों को पीने का पानी तक नहीं मिल पाता।’’ चूंचूं ने कहा।
यह सुनकर जंबो हाथी हंसने लगा। कहने लगा-‘‘चूंचूं भाई। तुम कद-काठी में बहुत छोटे हो। लेकिन लगता है कि तुम दिमाग से भी छोटे हो। कुएं हैं। हैंडपंप हैं। ट्यूबवेल हैं। दिक्कत कहां हैं?’’
चूंचूं चूहा बोला-‘‘दिक्कत ही तो है। क्या तुम्हें नहीं पता कि बिन पानी सब सून। जंबो दादा। आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। भूजल का अत्यधिक सेवन लगातार बढ़ रहा है। भारत की आधी आबादी भूजल के स्रोतों पर निर्भर है।’’
‘‘ये लो। कर लो गल। अब जल तो जल है। चाहे भूजल हो या कोई ओर। क्या फर्क पड़ता है?’’ जंबो नहाधोकर आराम से बैठ गया।
चूंचूं चूहा बोला-‘‘जमीन के भीतर का पानी भूजल है। नदी, नालों, हिमशिखरों और बारिश का पानी भूजल में नहीं आता है। पीने योग्य पानी तो संरक्षित होगा। खुद को ही देख लो। आप बजाए नदी में नहाने के नल के पानी से नहा रहे हैं। यह पानी तो पीने योग्य है। इसे बेकार में क्यों बहाए जा रहे हो? यह भूजल का दोहन कर सप्लाई किया जाता है।’’
जंबो हाथी बोला-‘‘ओह! ये तो मैने सोचा ही नहीं।’’ चूंचूं बोला-‘‘तो अब सोचो। तुम्हे पता है कि आज भी हमारे देश में नलों का पानी सभी को उपलब्ध नहीं है। ग्रामीण क्षेत्र की सत्तर फीसदी आबादी को नल का पानी उपलब्ध नहीं है। वहीं तीस फीसदी शहरी आबादी को भी नल का पानी उपलब्ध नहीं है। यही नहीं कुल मिलाकर देखें तो आज भी 11 फीसदी आबादी कुओं का पानी पीती है। 42 फीसदी आबादी हैंडपंप और ट्यूबवेल के पानी पर निर्भर है।’’ जंबों हाथी बोला-‘‘अरे! तो इसका मतलब यह है कि हर घर में अभी पानी नहीं पहुंचा है?’’
चूंचूं चूहा बोला-‘‘ठीक समझे। यही नहीं पूरी धरती में उपलब्ध पानी में केवल 1 फीसदी पानी ही पीने योग्य है। अब तुम ही बताओ। क्या हमें पीने योग्य पानी को इस तरह नालियों में बहाना चाहिए? नहीं न?’’
जबों हाथी ने सिर पकड़ लिया। फिर बोला-‘‘पीने का पानी क्यों? किसी भी तरह का पानी बेकार में नहीं बहाना चाहिए। थैंक्स मेरे सच्चे मित्र। मैं सुबह से ही नहा रहा हूं। कई मित्र यहां से गुजरे लेकिन किसी ने मुझे समझाने की कोशिश नहीं की। तुम ही मेरे सच्चे मित्र हो। चलो। इस खुशी में तुम्हें मोतीचूर के लड्डू खिलाता हूं। जंपी बंदर की दुकान के पास भी एक हैंडपंप लगा है। चलकर देखते हैं कि कहीं कोई वहां पानी का दुरुपयोग तो नहीं कर रहा!’’
यह सुनकर चूंचूं चूहा हंस पड़ा। दूसरे ही पल जंबो हाथी ने चूंचूं को सूंड से उठाया और अपनी पीठ पर बिठा लिया। दोनों जंपी बंदर की दुकान की ओर चल पड़े।
बढ़िया शिक्षा दायक कहानी !
aabhaar aapka.
यह बाल कहानी बहुत अच्छी और शिक्षा भरपूर है .
ji shukriya.