बाल कहानी : वैसे बड़ा मज़ा आया
एक नन्ही सी चींटी थी। आज वह घर से बाहर निकली थी। एक तितली ने चींटी का रास्ता रोक लिया। पूछा-‘‘अरे! छुटकी कहाँ चली?’’
चींटी ने तुनक कर जवाब दिया-‘‘तुमसे मतलब?’’
तितली को हँसी आ गई। तितली ने जवाब दिया-‘‘मतलब ये कि तुम अकेली हो!’’
चींटी ने अकड़ते हुए कहा-‘‘अकेली हूं तो क्या हुआ। सूरज भी तो अकेला है।’’
तितली ने सोचते हुए कहा-‘‘लेकिन तुम्हें किसी बड़े का सहारा लेना चाहिए।’’
चींटी झट से बोल पड़ी-‘‘सहारा? वो क्यों भला? मेरा रास्ता छोड़ो।’’
तितली ने हाथ जोड़ते हुए कहा-‘‘ओफ्फो। मेरी नानी माँ। मुझे माफ कर। कहीं भी जा। लेकिन याद रख। सोच समझ कर कदम उठाना। समझी।’’
चींटी ने मटकते हुए कहा-‘‘हाँ-हाँ। मुझ में इतनी समझ है। बिन मांगी सलाह के लिए धन्यवाद।’’ चींटी आगे बढ़ गई।
नन्ही चींटी पहली बार घर से बाहर निकली थी। वो भी किसी को बिना बताये। चींटी की आँखों में गजब का उत्साह था।
वह दुनिया को अपने तरीके से देखना चाहती थी।
चींटी बहुत खुश थी। लेकिन मन ही मन थोड़ा घबरा भी रही थी।
उसकी माँ अक्सर कहती थी-‘‘इस दुनिया में कदम-कदम पर कठिनाईयां हैं। सोच-समझ कर चलना पड़ता है।’’
चींटी ने सोचते हुए कहा-‘‘मैं भी तो सोच-समझ कर चल रही हूं।’’
चींटी अंगूर की बेल के पास जा पहंुची। एक अंगूर का दाना पक कर नीचे गिरा हुआ था।
‘‘ये इतना बड़ा क्या है?’’
चींटी अंगूर के दाने के पास जा पहुंची। उसे एक टक देखती रही।
‘‘यह तो हिल भी नहीं रहा है। इसे हिलाती हूं।’’
चींटी ने जोर लगाया। अंगूर का दाना टस से मस भी नहीं हुआ।
‘‘उफ ! ये तो बहुत मोटा-ताजा है। इसे काटती हूं।’’
चींटी ने अंगूर पर डैने चुभा दिये।
अंगूर का छिलका फट पड़ा। रस तेजी से बाहर निकल पड़ा। चींटी रस में बह गई।
‘‘ओह! अरे! अरे! ये तो बाढ़ आ गई। मैं तो डूब ही जाती। बाल-बाल बच गई।’’
चींटी कुछ देर धूप में बैठी रही। फिर आगे बढ़ गई।
रास्ते में उसे एक गुब्बारा मिला। गुब्बारा में हवा भरी हुई थी। वह हवा के झोंके से हिल रहा था।
‘‘उई माँ। अब ये क्या है? लेकिन ये तो हिल-डुल भी रहा है। इससे बच कर रहना होगा।’’
चींटी गुब्बारे को देखने लगी। पूछने लगी-‘‘कौन हो तुम? मेरे रास्ते से हटो।’’
गुब्बारा कुछ नहीं बोला। बस इधर-उधर हिलता रहा।
बहुत देर हो गईं। चींटी गुब्बारे के पास जा पहुंची। वह बुदबुदाई-‘‘इसे टटोलती हूं। आखिर ये है क्या?’’
चींटी ने अपने डैने गुब्बारे पर चुभा दिये।
‘फटाक’ की आवाज आई। गुब्बारा फट पड़ा।
गुब्बारे की हवा ने चींटी को उछाल दिया।
चींटी चिल्लाई-‘‘अरे। कोई मुझे आंधी से बचाओ।’’
चींटी धड़ाम से नीचे गिरी।
चींटी चिल्लाई-‘‘मैं कहां हूं।’’
चींटी की मम्मी ने कहा-‘‘तुम अपने बिस्तर पर हो। मैं तुम्हें कब से खोज रही हूं। क्या हुआ?’’
चींटी ने सारा किस्सा सुनाया।
चींटी की मम्मी ने हंसते हुए बताया-‘‘मेरी प्यारी बच्ची। बाढ़ कहीं नहीं आई थी। तुम अंगूर के रस में बह गई थी।’’ नन्हीं चींटी ने पूछा-‘‘और वो आंधी! जिसने मुझे बिस्तर पर ला पटका।’’
चींटी की मम्मी ने बताया-‘‘तुम्हें गुब्बारा मिला था। वह हवा से भरा हुआ था। गुब्बारा फट गया था। उसकी हवा ही तुम्हें ले उड़ी। समझी। तभी तो कहती हूं कि सोच-समझ कर चला करो। देख-परख कर आगे बढ़ो।’’
‘‘ओह! समझ गई। मम्मी कुछ भी हो। वैसे बड़ा मजा आया।’’
नन्ही चींटी अपने मम्मी से लिपट गई।
-मनोहर चमोली ‘मनु’
अच्छी बाल कहानी !
बहुत अच्छी लगी . बच्चों के लिए बहुत दिलचस्प है .