कविता

अजन्मी बेटी की व्यथा

देख रही हूं लुटता जीवन, छाया घोर अँधेरा
हर पल जकड़े पथ में मुझको, शंकाओं का घेरा।
मेरे जीवन की डोरी को माता यूं मत तोड़ो
मैं भी जन्मूँ इस धरती पर,मुझे अपनों से जोड़ो।
क्यों इतनी निष्ठुर हो  माता,

क्या है मेरी गलती।
हाय विधाता कैसी दुनिया,
नारी नारी को छलती।
समझ सको तो समझो माता,
मुझ बिन सूना आँगन।
याद करोगी जब भी मुझको,
होगा दूभर जीवन।
मेरी व्यथा सुनो हे माता,
बनो   न    तुम  हत्यारी।
जीवन दान मुझे दो माता,
यही   धर्म  है  नारी।
मॄत्यु का भय मुझे सताता,
हर   पल   जी   घबराता।
पलने दो तुम मुझे गर्भ में,
मुझे    न     मारो     माता।
लक्ष्य जीव का जन्म है लेना,
क्यों मनमानी   क र ती ।
बेटी है  सौगात ईश की,
स्वर्ग   इसी   से  धरती।
पूर्व जन्म से मुझे न मारो,
मेरी  तुमसे   विनती।
सब कुछ बेटों को दे देना,
मत कर ना मेरी गिनती।

—  सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा

सुरेखा शर्मा(पूर्व हिन्दी/संस्कृत विभाग) एम.ए.बी.एड.(हिन्दी साहित्य) ६३९/१०-ए सेक्टर गुडगाँव-१२२००१. email. [email protected]

3 thoughts on “अजन्मी बेटी की व्यथा

  • जवाहर लाल सिंह

    मार्मिक किन्तु सत्य …हम कब संवेदनशील होंगे?

  • गुंजन अग्रवाल

    maarmik

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कविता !

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