कविता

वो लम्हा ……।

वो पल
वह मंजर
लूटता सा ,
विस्फारित नयन

वो लम्हा
दिल दहलता
विह्वल रूदन
चीत्कार
मचा हाहाकार
छितरे मानव अंग
बिखरा खून
सूखे नयन

उस क्षण
फैलती आँखे
रूक गयी साँसे
भयावह विस्फोट
गोलियों की बौछार
आतंकी तांडव
वो काली स्याह रात
मानवता की हार
चकित नयन

सुनसान रस्ते
भयभीत चेहरे
ठहरती धड़कन
आने वाला लम्हा
ख़त्म किसका जीवन
सिसकियाँ प्रार्थना
मौत का सामना
ठहर गया वक्त
छलकते नयन

वो पल
वह मंजर ………….!

–शशि पुरवार

2 thoughts on “वो लम्हा ……।

  • गुंजन अग्रवाल

    maarmik rachna

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कविता !

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