अंबर से धरा तक
गई रात हुई थी
पुरज़ोर बारिश
अल सुबह देखा
खुला- खुला आसमां का
पल- पल
बदल रहा रंग
केसरिया,सिंदूरी,
पीला कभी नारंगी
ललछौंह दीप्ति से
दीप्तिमान प्रकृति का
पुलकित हो रहा
कण-कण
विस्फरित हो गए
मेरे नयन
धुली–धुली धरा में
खिला-खिला है जीवन
भौंरे गुनगुना रहे औ
दिल मे असीम प्रीत लिये नीली–उजली तितली
फूलों को चुम रही
चहुं ओर फैला है
मादक स्फुरण
हीरे सी चमक रही
पत्तों पर पड़ी बूंद
टहनी पर बैठी
अलसाई चिड़ियां
बार- बार रही
आँखे मूंद
आनंद मे डुबा है
सारा भुवन
रात रानी की महक लिए
बह रहा मंद मंद शीतल सुगंधित पवन
दिखने वाली ये सफेद बूंदे
होती है कितनी रंगीन
अंबर से धरा तक
रंग और उमंग का
करती है निरझरण !!
****भावना सिन्हा ****
बहुत अच्छी .
वाह
बहुत खूब !
bahut sundar