दुश्मन बनी काया !
हां,
मैं लूट चुकी हूं
स्कूल-कॉलेज औ अस्पताल
खेत-बधार
खुद अपने घर में ही ।
सैकड़ों आंखों के सामने
बीच बाज़ार में
वो दिल वालों के शहर
नवाबों के गांव में ।
लूट ली जाती है
हर दिन मेरी आबरू
भेड़ियों से होती हूं
मैं अबला रू-ब-रू ।
सोचती हूं
मेरा ही दुश्मन बन बैठा है
मेरा शरीर और मेरी काया ।
मुकेश जी , इस नए भारत को आप ने सही बताया है , जो हो रहा है और यह शर्मनाक है .
सुन्दर