कविता
दिव्या का दिव्य रूप सूरज को भी भा गया
अब तुम चन्दन लगाओ या कहर ढाओं
शांत हो तेरे ही दर पे सर झुकाएं खड़ा रह गया
हाथ में कमान है अब तुम्हारें ही जो चाहे कर आओ
…सविता
दिव्या का दिव्य रूप सूरज को भी भा गया
अब तुम चन्दन लगाओ या कहर ढाओं
शांत हो तेरे ही दर पे सर झुकाएं खड़ा रह गया
हाथ में कमान है अब तुम्हारें ही जो चाहे कर आओ
…सविता