मुक्तक
हमारी सहनशक्ति को देखना चाहता था
दुःख पर दुःख दे वह परीक्षा ले रहा था
हम भी थे खड़े अडिग हो माथे शिकन ना था
तमतमाया बहुत थक हार चलता बना
प्रेम का जो भूखा हो उसे क्या चाहिए
सारी कायनात नहीं बस प्यार चाहिए
मीठे वचनों से होता यदि दिन शुरू
फिर इंसान को और क्या चाहिए …
..बस यूँ ही ..
सविता मिश्रा