सेंटाक्लोज
इस बार सेंटाक्लाज
तुम लाना ये उपहार
भर देना मानस मन मे
दया भाव और प्यार
झगड़े फसाद को उठाये
वो हर जङ मिटा देना
प्रेम अंहिसा और मैत्री भाव को
हर मन मे बिठा देना
अभी भी चित्कार रही
उन मासूमों की पुकार
जो इसी झगड़े और नफरत से
आतंककियो के हुए शिकार
हर मानव बन बेठा है
अपना दुश्मन खुद ही आज
द्वेष और बदले मे
भूल गया अपने ही काज
जिजस भी आज रो रहा होगा
देख अपनो के हाल बेहाल
शर्मसार कर रहे है
उसके बलिदानो की ढाल
अब बस अपनी पोटली से
निकालना एक ही उपहार
प्यार मोहब्बत से बरसे
हरतरफ भाईचारे की धार
sundar srijan
यही आशा है सब को .
बढ़िया भावनाएँ !