कविता

रिश्तों की पवित्रता (कविता )

( आज मैंने मार्किट में 2 लड़को को कोई ऐसी बात करए सुना की दिल में एक टीस सी उठी और उन् जैसे कमीने लड़कों/आदमियों के लिए यह पंकियां लिखी हैं जो बहिन भाई के रिश्तों को भी मजाक में लेते हैं)

वाह रे कलयुगी पुरुषो
ठरकी होना तो अलग बात है
लेकिन
तुम तो ठरकपन्ति की सीमा मुका रहे हो
राह चलती मासूमो से बात नही हो पाती
तो बात करने के बहाने बहन बना रहे हो
अरे कुछ तो शर्म करो
रिश्तोँ की पवित्रता अगर नही समझ सकते
तो भी नकार सकते हैं यह गुस्ताखी तुम्हारी
मगर
अपने थोड़े से कमीनेपन और स्वार्थ की खातिर
क्यों इन् पवित्र रिश्तों को कफ़न औडा रहे हो
कफ़न औडा रहे हो
मत भूलो
परायी बहनो के रिश्तों को
तुम तार तार तो कर सकते हो
मगर
क्या अपनी बहनो के साथ होते
ऐसे गुनाह माफ़ कर सकते हो

इसलिए याद रखना
जिसे एक बार बहिन कहना
उसमे साक्षात् बहिन का ही अस्तित्व देखना
अन्यथा
डूब जाना चुल्लू भर पानी में
और अपने कफ़न में ही
पूरे ब्रह्माण्ड का स्त्रीत्व देखना
हो सकता है
इस से तुम्हे अकल आ जाए
और मरने से पहले
इंसानियत वाली शकल आ जाय।

(महेश कुमार माटा )

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- [email protected]

One thought on “रिश्तों की पवित्रता (कविता )

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    महेश जी किया चांटा लगाया उन कमीनों के मुहं पर . १९ वर्ष का था जब मैंने भारत छोड़ा . उस वक्त ऐसे कमीनों का मुंह काला करके गधे पे चडाया जाता था . आज जो भारत में हो रहा है देखने सुनने में तकलीफ होती है .

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