कविता

मुहब्बत के मंदिर में

मुहब्बत के मंदिर में, दिलों के सौदे होते हैं
यहाँ अपने ही अपनों को खोते हैं

प्यार कहीं खो गये हैं
व्यापार से हो गये हैं
ज़िस्म जो ढके थे
बाज़ार से हो गये हैं
मुहब्बत के मंदिर में………

सरे राह लग रही हैं बोलियाँ
सहेली भी हो गयी हैं पहेलियाँ
सीधी सखी के लिए बन गयी बहेलिया
सौदा ना पट्टे तो चल रही हैं गोलियाँ
मुहब्बत के मंदिर में………

एक दिया जले मेरे घर
एक दिया जले तेरे घर
मेरा घर भी रोशन हो
तेरा घर भी रोशन हो

तेरा दुःख मुझे दिखे
मेरा दुःख तुझे दिखे
तेरा दुःख मैं बाँट लूँ
मेरा दुःख तू बाँट ले

न तू ज्यादा दुःख पाये
न मैं ज्यादा दुःख पाऊँ
खुशियों की बहार चारों ओर रहे
एक दिया जले मेरे घर
एक दिया जले तेरे घर

– Vijay Balyan
(23/10/2014)
cell : 09017121323, 09254121323

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विजय 'विभोर'

मूल नाम - विजय बाल्याण मोबाइल 9017121323, 9254121323 e-mail : [email protected]

2 thoughts on “मुहब्बत के मंदिर में

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता , आज का सच लेकिन निराशा से आशा की चाहत .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर कविता ! वाह !

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