रवि का अभिनंदन
पूरी प्रकृति है,
जाड़े की गिरफ़्त में!
साँस रोके खड़े हैं.
पैड़-पौधे,
एकदम शांत!
दुबके हुए है पंक्षी भी,
अपने-अपने घोंसलों में!
सुबह की प्रतीक्षा में है,
हर आमजन अपने-अपने घरों में!
रजाई में दुबका ठिठुरता हुआ,
कि कब रवि प्रकट हों और ठंड का कहर,
हो बेअसर!
रवि को भी आया तरस,
खोल बादलों का दरवाजा,
हौले से बाहर झाँका!
जड थी पूरी प्रकृति जाड़े से,
ठिठुर रहे थे सब के सब,
रवि का मन पसीजा!
देख यह और छोड़ हठ,
आये निकल बादलो के ओट से!
लगा सिंदूरी आभा लिये,
बड़ी सी गेंद हुई,
आस्माँ में प्रकट!
उनकी पावन,
रशमियाँ होले-होले,
अपनी नर्म हल्की छुअन से,
सबको दस्तक देकर जगा रही हैं !
पेड़-पौधों में आ गई जान,
लगा जैसे लहरा- लहरा कर,
सबका कर रहे है अभिवादन!
पंक्षी भी घोंसलों से बाहर निकल,
भरने को तैयार हैं उड़ान!
आमजन भी अपनी-अपनी,
रजाईयों से बाहर निकल!
द्वार खोल कर रहे हैं,
रवि का अभिनंदन!
…राधा श्रोत्रिय”आशा”
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अच्छी कविता. ऐसी ठण्ड में सूर्य भगवन के दर्शन ही सुख देते हैं.
राधा जी , कविता बहुत अच्छी लगी , कुछ हंसी भी आ गई किओंकि इस वक्त माइनस टू डिग्री सेल्सिअस टेम्प्रेचर है बाहिर और घर में हीटिंग लगा कर दुबके बैठे हैं . सूरज देवता के दर्शन तो होते ही नहीं , उस के लिए अभी चार महीने इंतज़ार करना पड़ेगा . अब तो अगर सूरज देवता बाहिर आ भी जाएँ तो वोह विचारे भी कम्बल ओड़ कर बाहिर आएँगे .