21वीं सदी की बेटी
कदम रख चुकी बेटी को
माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य
ठीक वैसे ही
जैसे सिखाया था उनकी माँ ने
ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते–ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना।
बहुत अच्छा सन्देश। 21 वीं सदी की बेटी को ऐसा ही होना चाहिए
बहुत सुन्दर कविता !