अभिव्यक्ति की आज़ादी
अभिव्यक्ति की आज़ादी क्या हिन्दू धर्म के खिलाफ बकवास करने से ही मिलती है? अगर सिरफिरा मकबूल हुसैन हिन्दू देवी देवताओं के अशलील चित्र बना कर बेचे तो वह हमारे बिकाऊ हिन्दू विरोधी मीडिया और देश द्रोहियों के अनुसार चित्रकार की कलात्मिक स्वतन्त्रता गिनी जाती है लेकिन अगर तसलीमा नसरीन इस्लाम के खिलाफ कुछ लिख दे तो उस की कृति देश में पढी जाने से पहले ही बैन कर दी जाती है। छत्रपति शिवाजी के खिलाफ कुछ भी झूट लिखा जा सकता है लेकिन नेहरू गांधी परिवारों के बारे में सच्ची बातें भी बैन हो जाती हैं। यह दोहरे माप दण्ड केवल हिन्दूओं के खिलाफ ही अपनाये जाते हैं और केवल उन्हें ही सहनशीलता की नसीहत भी करी जाती है। मीडिया चैनल दोचार जाने माने चापलूसों को लेकर बहस करने बैठ जाते हैं और गलियों में निन्दा चुगली करने वालों की तरह दिन भर यह खेल हमारे राष्ट्रीय कार्यक्रमों का प्रमुख भाग बन जाता है।
फिल्म “PK”
फिल्म “PK” पर बैन की मांग को लेकर लोगों का सडकों पर आक्रोश तो देखा जा सकता है लेकिन उन का लक्ष्य सही नहीं है। लोगों का आक्रोश फिल्म के निर्माता, निर्देशक, कलाकारों, सिनेमा घरों तथा सैंसर बोर्ड के विरुध है जिन्हों ने जानबूझ कर हिन्दूओं की भावनाओं की अनदेखी करते हुये फिल्म बनाई और उसे दिखाने की इजाज़त दे डाली। इन लोगों के अडियल रवैये के कारण अब तो हिन्दूओं का इन संस्थानों से विशवास ही उठ चुका है जिस का प्रमाण धर्माचार्यों का खुल कर बैन का समर्थन करना है। आशा और अपेक्षा है कि आनेवाले दिनों में अन्य हिन्दू-सिख धर्मगुरु भी इस धर्मयुद्ध में जुडें गे और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिये आर-पार के संघर्ष का नेतृत्व करें गे।
शंकराचार्य
कुछ महीने पूर्व शंकराचार्य जी ने साईं की मूर्तियां हिन्दू मन्दिरों से हटवाने के लिये अखाडों को इस लक्ष्य की पूर्ति के लिये चुना था लेकिन अधिकांश हिन्दूओं ने अपना संयम बनाये रखा था। अब लगता है कि अगर सरकार हिन्दूओं के स्वाभिमान की रक्षा के लिये ठोस कारवाई नहीं करती तो अपने स्वाभिमान की रक्षा का भार हिन्दू धर्म नेता स्वयं उठायें। हिन्दू समाज इकतरफा सरकारी धर्म निर्पेक्षता से ऊब चुका हैं और नेताओं के खोखले वादों तथा लच्चर कानूनों के कारण पानी सिर से ऊपर जा चुका है।
भारतीय संस्कृति
नरेन्द्र मोदी केवल कानूनों के ज्ञाताओं को विदेशों से भी मंगवा कर अपने देश में जज बना सकते हैं लेकिन वह ऐक्सपर्ट देश की संस्कृति की रक्षा करने के योग्य नहीं हो सकते। इसलिये हमारी मांग है कि संवैधानिक पदों पर जिन लोगों का चैयन किया जाता है उन्हें भारत की संस्कृति की केवल जानकारी ही नहीं होनी चाहिये बल्कि उन्हें भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट निष्ठा भी होनी चाहिये। उन्हें अब यह भी विदित करवाना ज़रूरी है कि भारतीय संस्कृति की परिभाषा में वह समुदाय कदापि नहीं आते जिन का मूल देश के बाहर हुआ है। जो केवल हिन्दूओं को परिवर्तित करने या गुलाम बनाने के लिये भारत को लूटते रहै थे। मोदी भले ही अपने लिये धर्म निर्पेक्ष रह कर वोट बटोरने की राजनीति करते रहैं मगर यह भी याद रखे कि अगर वह भारत में ही हिन्दूओं के स्वाभिमान की रक्षा नहीं कर सकें गे तो फिर अपनी सरकार के दिन भी गिनने शूरू कर दें।
स्वामी रामदेव
बी जे पी समर्थक स्वामी रामदेव और दवारका के कांग्रेसी समर्थक शंकराचार्य फिल्म “PK” के विरोध में अब आये हैं – जब सांप हिन्दूओं को काट कर जा चुका है। बाद में “सांप-सांप” चिल्ला कर लकीर पीटने से क्या फायदा? फिल्म “PK” के निर्माता ने जो कमाना था उस से कहीं ज्यादा उस ने तो कमा लिया और कमाई का हिस्सा पाकिस्तान को भी दे दे गा। फिल्म की प्बलिसिटी भी अब जरूरत से ज्यादा हो चुकी है। अब इस की सी-डी भी पाकिस्तान और मुस्लिम देशों में खूब बिके गी। यह कमाई फिल्म “PK” ने हिन्दूओं के देश में ही हिन्दूओं के मूहं पर थूक कर हिन्दूओं से ही करी है।
हिन्दूओं का आक्रोश
अब हिन्दू जाग रहै हैं। आस्थाओं का घोर अपमान होने के कारण हिन्दूओं का आक्रोश अब पूर्णत्या तर्क संगत है। उन्हें सहनशीलता के खोखले सलाहकारों की ज़रूरत नहीं। लेकिन विरोध उन लोगों के होना चाहिये जो व्यक्तिगत तौर पर इस के मुख्य कारण हैं। यह नहीं होना चाहिये की अपमान तो कोई दूर बैठा राजेन्द्र करे, और क्रोध में चांटा पास खडे धर्मेन्द्र को जड दिया जाये। अगर अब हिन्दूओं को अपनी साख बचानी है तो इतना तीव्र आन्दोलन होना चाहिये कि निर्माता की पूरी कमाई जब्त करी जाये, फिल्म पर टोटल प्रतिबन्ध लगे। फिल्म की सी-डी भी जब्त हों। निर्माता और निर्देशक और लेखक को औपचारिक नहीं – वास्तविक जेल हो, तथा सैंसर बोर्ड के सदस्यों को भी देश द्रोह के लिये जेल की सज़ा हो ताकि भविष्य में किसी कुत्ते को हिन्दूओं की भावनाओं से खेलने की हिम्मत ना हो।
हिन्दूओं की अनदेखी
मोदी सरकार के नेताओं ने अपने अपने पेज तो सोशल मीडिया पर खोल दिये हैं लेकिन वह सभी इकतरफा हैं। आप कुछ भी पोस्ट कर दें कोई उत्तर या प्रतिक्रिया नहीं आती। यह सिर्फ छलावा मात्र हैं। दिल्ली में चुनाव होने वाले हैं। नरेन्द्र मोदी समेत सभी बी जे पी के छोटे बडे सभी नेता अल्प-संख्यकों के तुष्टिकरण में लगे हैं। आमिर खान से ले कर कामेडियन कपिल शर्मा तक को मोदी जी अपने साथ किसी ना किसी बहाने की भीड को जोडने में लगे है और हिन्दूओं को भूल चुके हैं। इसलिये हिन्दूओं की अनदेखी करने के लिये ऐक झटका बी जे पी को भी लगना चाहिये। जब तक आमिर खान और से जुडे लोगों को गिरफ्तार नहीं किया जाता मेरा तो निजि फैसला है कि फेसबुक या किसी अन्य स्थान पर बी जे पी के पक्ष में कुछ नहीं लिखूं गा। सभी हिन्दू साथियों से मेरा अनुरोध है कि हो सके तो वह अपने निजि योग्दान को स्थगित कर दें। जब बी जे पी के नेता दिल्ली में वोट मांगने आयें तो उन्हें हिन्दूओं की चेतावनी याद रहनी चाहिये। फूलों के हार के बदले हिन्दू भावनाओं की अनदेखी करने का कलंक बी जे पी की हार के रूप में उन के माथे पर चिपक जाना चाहिये।
लगातार चुनावी विजय में धुत मोदी सरकार को अब याद रहै कि भावनाओं की अभिव्यक्ति की आज़ादी हिन्दूओं को भी है। अगर आप सहमत हैं तो कृप्या शेयर करें।
चाँद शर्मा
अच्छा लेख.
पूर्ण रूप से सहमत हूँ।