आया नव-वर्ष
फिर आया नव-वर्ष, ले परम उत्कर्ष
चंहु ओर होंगी खुशियाँ-बधाईयाँ
नव-वर्ष जो आया है
फिर हर वर्ष की भाँति
भूल जायेंगे सब
वो चीत्कार …सिसकती नारियों की
गौण हो जायेंगे फिर से
बलात्कार, दुराचार, तेजाबी हमले
फिर ये तथाकथित सभ्य
लग जायेंगे दैनिक कार्यों में
फिर नेता लड़ायेंगे जात-धर्म के नाम पर
फिर सरहद पर कटवाये जायेंगे सिर
उन वीर जवानों के
अंतर्राष्ट्रीय दबाव के नाम
फिर किसी नेता को बना ढ़ाल
छोड़े जायेंगे आतातायी
फिर बहलाये जायेंगे आमजन
मूलभूत सुविधाओं का लोभ दिखा
फिर काटी जायेगी फसल वोट की
फिर मुआवजे के नाम
कुरेदे जायेंगे घाव दंगा पीड़ितों के
फिर करेगा छल धर्मगुरू बन
कोई लाखों की आस्था संग
फिर होगा वही सब
जो होता आया हर वर्ष
परन्तु हमें क्या ???
हम तो भेजेंगे बधाई संदेश
करेंगे कामना अच्छे समाज की
देंगे भेंट…कपड़े … मिठाईयाँ
दरकिनार कर उन सबको
बिताते रात जो
खुले आकाश तले… ठिठुरते
भूख से बिलखते बच्चों को
नसीब नहीं जिन्हें दो वक्त का खाना भी
फिर बहलायेंगे हम इक-दूजे को
खुशहाली, उन्नति, कामना पूर्ति के
आशीर्वाद व शुभकामनायें देकर
भगवान के भरोसे…!!!
*** सुधीर मलिक ***
बहुत अच्छी कविता. नव वर्ष के अवसर का उपयोग नए संकल्पों के लिए करना चाहिए.
विजय जी सादर आभार…बिल्कुल सही कहा आपने