परावर्तन
पपीहे ने एक दिन
चाँद से पूछा
क्या ये चांदनी तुम्हारी है
चाँद ने सत्य का मार्ग अपनाया
कहा …..नहीं ये सूर्य का परावर्तन है
पपीहे ने गीत रोक दिया
चाँद पर इल्जाम लगाया
क्यों मुझे मंत्रमुग्ध बनाया
अब अगर चाँद चाहता तो
झूठ भी बोल सकता था
स्वार्थी होता तो
भ्रम को चला भी सकता था
चाँद ने सत्य का मार्ग अपनाया
और पपीहे का प्यार गवाया
लेकिन आज चाँद खुश है
कि उसने सत्य का मार्ग ही अपनाया
और अब गाँधी कहाँ रहे हैं …….
— इंतज़ार
(परावर्तन=Reflection)
कविता अच्छी है, पर इसमें गाँधी को घसीटना ठीक नहीं रहा. गाँधी का मार्ग सत्य का नहीं बल्कि अर्धसत्य और पाखंड का था.
विजय जी यहीं एक रहस्य है ..अगर आप ऐसे सोचें ..चाँद से चांदनी का राज़ पूछा है ..गाँधी से सत्य का राज़ पूछ सकते थे मगर …अब गाँधी कहाँ ….