नव वर्ष के ‘नव’ पर शब्दों की बगावत !
नववर्ष ! -हर्ष ही हर्ष !
किस बात का ? -एक नए साल का ! क्या वाकई ? सबका नया साल है आज ??
नहीं बिलकुल नहीं ! सबका नया साल अपने अपने धर्म जाती तिथि और न जाने किस किस आधार पर अलग अलग दिन आता है !
फिर ३१ दिसम्बर की रात बारह बजे नया क्या आता है ? क्या अन्तरिक्ष से कोई प्रकट होता है ? या कुछ ऐसा , ऐसा कुछ नया होता है जो नित्य नियम से हरएक के नए साल के पहले दिन के पहले पल में ही होते नजर आता है ? या , फिर ऐसा कुछ नया जो दुनिया के लिए भी नया और सिर्फ नया ही हो ! न भूतो न भविष्यति हो ?
नहीं ऐसा कुछ नहीं होता ! फिर भी इस प्रश्न का बिलकुल ही सटीक जवाब क्या हो सकता है ये सभी जानते हैं ! एक तय गिनती का फिर से शुरू होना ! मतलब अंग्रेजी में रिपीट और हिंदी में दोहराना ! जाहिर है जिसे दोहराया जाए वह नया नहीं होता ! फिर वह चाहे किसी भी धर्म जाती तिथि के अनुसार हो नया तो कतईं नहीं कहा जा सकता !
फिर भी सब नए का हर्ष मनाते हैं ! मनाइए , मनाइए ! हर्ष के लिए कोई भी कारण हो कोई फर्क नहीं पड़ता ! और न ही पड़ना ही चाहिए !
यहाँ सवाल नव का है , नए का है , नूतन का है न की किसी नक़ल का ! आदि सिर्फ एक बार को कहा जा सकता है इसीलिए इस हर्ष से वर्ष को वर्जित करने की मंशा है ! मेरी ? नहीं इस आदि , नूतन , नया , नविन कहकर पुकारे और जाने जानेवाले शब्दों की !
क्या कहा ? शब्दों की ??
जी ! जरुर !! शब्दों की भी अपनी अभिव्यक्ति होती है !, एक पहचान होती है ! यहाँ तक की उनका अपना एक आत्मसन्मान भी होता है !
ये बात अलग है की हम इन सबके बारे में सोचे बिना शब्दों को अपना गुलाम बनाए रखते हैं ! या फिर ऐसा भ्रम पाले रखते हैं !
और नव-वर्ष भी इसी भ्रम का परिणाम है ! और इसी शब्दों की अभिव्यक्ति , पहचान और आत्मसन्मान अब फ़रियाद लिए खड़े हैं की केवल संख्या से बदलने वाली एक और संख्यात्मक एकसमान गिनती को नया क्यूँ कहा जा रहा है ? है तो ये भी एक वर्ष ही ! जिसके बाद आने वाले वर्ष क्या वर्षों तक का हमें पता है ! फिर नव वर्ष में ‘नव’ क्या है ?
बहोत दिनों बाद शब्दों की गली से गुजर रहा था ! सोचा इन पुराने ही शब्दों को लेकर नव वर्ष में कुछ नया लिखूंगा ! लेकिन शब्द थे की उन्हें पुराना कहा जाने पर इतने अधिक गुस्सा आया हैं की बदले में उन्होंने यह नववर्ष को नव कहे जाने पर ही आपत्ति उठा दी है और अब उनकी आपत्ति का समुचित समाधान पाए बिना वे मेरी कलम से सम्पूर्ण शांतिपूर्ण असहकार आन्दोलन से पीछे हटने को तैयार नहीं ! तो सुजान और सुग़नों कृपया इस समस्या का समाधान बताकर मुझे शब्दों से आजीवन वंचित रहने से बचाएं !
हा…हा…हा… अच्छा लिखा है आचार्य जी. नव वर्ष मनाना बस एक लकीर पीटना है. बच्चों को मौजमस्ती का बहाना मिल जाता है. अगर हम हर दिन को अगले एक वर्ष का पहला दिन मानें तो अधिक अच्छा हो.
यह एक रवाएत ही है वर्ना नया कुछ भी नहीं है. एअर एशिया का हवाई ज़हाज़ समुन्दर में डूब गिया तो उन के रिश्तेदारों को किया सन्देश दे सकते हैं .