आओ धर्म-धर्म खेलें
इन दिनों धर्म को लेकर खेली जा रही राजनीती व सारे दाँव पेच गुजरी 21 सदियों का शायद सबसे घिनोना खेल है जिस भी समाज,धर्म, मनुष्य को देखो अपने-अपने धर्म का एक झंडा बहुत गहराई से गाड़ने की कोशिश कर रहा है । जैसे अचानक इन्ही दिनों उनका धर्म समूल नष्ट हो जाएगा जो उसने धर्म-धर्म का राग ना छेड़ा । हर पहला आदमी दूसरे को धर्म की याद दिला रहा है .. कहने को चाँद तारों पर पंहुच गए ग्रह नक्षत्रों को अपने वश में कर रहे हैं पर हमारी दकियनुसी सोच नहीं बदली । नहीं बदली हमारी मानसिकता । आदमी जितना ज्यादा पढ़ा लिखा हुआ उसकी मनुष्यता की पीठ पर धर्म नाम का फोड़ा भी तेजी से उभरा ..और उस फोड़े की ऊंचाई में मनुष्यता नाम की पीठ गुम हो गई ।
अचानक पिछले पांच-छ सालों में मैंने सबसे ज्यादा हौवा जो देखा सुना पढ़ा समझा वो धर्म था .. वो है धर्म चाहे यहूदी ,जैनी ,हिन्दू मुसलमान इसाई बोध किसी भी धर्म को ले लो सबके अपने-अपने मठाधिस उनकी अपनी-अपनी डफली ,अपने-अपने राग ,अपनी-अपनी गूंगी बहरी अंधी भीड़ । बल्कि मैं यह कहूँगी की इन सोशल साईट व मिडिया ने भी इन बकवास बातों को सबसे ज्यादा तवज्जो दी इस खेल को खेलने के लिए बढ़िया लम्बा चौड़ा मैदान दिया फेसबुक ट्वीटर ब्लोग्स जहाँ एकदम तानाशाह की तरह सबका निरकुंश व्यवहार। एक और चीज जो सिद्दत से महसूस की इन दिनों वह थी गाली=गलोज व अमर्यादित भाषा जो शब्द कभी देखे पढ़े सुने न थे सोशल मिडिया ने उनसे भी रूबरू करवा दिया।
यह बात तो सौ प्रतिशत सही है कि जिस किसी विषय का पक्ष उसें जितना प्रबल नहीं बना पता उतना उसका विरोध उसें ऊंचाई दे देता है ।सोशल साईट पर पक्ष व विपक्ष की तवरित कार्यवाही पांच-पांच हजार की सबके पास अपनी-अपनी लिस्ट फेवर अन फेवर वाली .. । फिर भला कौन पीछे रहे .. हंगामा भी बरपाया यहाँ …फतवे भी जारी किये ..यहाँ अपराध हुआ.. बहस हुई …अदालतें भी लगी सजा भी सुनाई …वाह वाह यह बहुत बढ़िया दुनिया है जहाँ दोस्ती दुश्मनी सब सेकेंड्स में होती है। दूजा यह कि हम अपने अपने धर्म के प्रति इन साइट्स पर आकर इतने जागरूक हुवे कि हमें यह भी जरूरत नहीं लगी कि हम यह भी जानें की हम हमारे धर्म के बारे में कितना जानते हैं ? अंधे नु अँधा ढेरिया दोई कूप पड़ंत… हम धर्म का अर्थ समझे बिना गूढ़ चिंतन किये बिना हमरा श्रेष्ठ हमारा श्रेष्ठ का नारा बुलंद किया जा रहै हैं।
मनुष्य अक्सर अपने धर्म का उसके भावों का सत्य सौंदर्य देखने में असफल रहता है, बस हर प्रश्न के बदले प्रश्न करना जानता है ना उत्तर जानता है ना जानने की कोशिश करता है । बहसबाजी करने के चक्कर में भूल जाता है आदमी कि विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं।आज हर सामान्य व्यक्ति जो थोड़ा बहुत खाता-पिता या दो चार या कुछ अधिक किताबें पढ़ा हुआ सोशल मिडिया पर है । जिसें खुद को निजी सोच या चिंता से धर्म से कोई लेना देना नहीं वो सिर्फ अपने धर्म गुरुओं के कहने पर ऊँचे-ऊँचे हाथ उछालने लगता है ।लम्बी लम्बी दौड़ दौड़ने लगता है । या अपने उस दोस्त की बात की पुष्टि करने के लिए उछल-उछल कर कमेंट्स करता है जिसकी लिस्ट में वो जुडा है या जिस धर्म से वो है। वह जानता है कि संसार में जन्मे पहले पुरुष स्त्री का कोई धर्म नहीं रहा होगा और हम सभी उसकी ही संताने हैं पर सच्चाई से दूर भागता है .. ।
और तो और आजकल धर्म की अधिकतर कक्षाएं भी इन्ही साईट में लगती है .. लाइक कमेंट्स शेयर भी आजकल धर्म को खतरे से बचाने का अच्छा प्रयास माना जाता है अगर आप हिन्दू हैं तो लाईक करें ..अगर आप मुसलमान है तो शेयर करें …आप इसाई हैं तो कमेंट्स करें ..वो भी अस्ल हों तो ?पाक हैं तो ?शुद्ध हैं तो ? मतलब आपको अब आपके धर्म का सार्टिफिकेट चाहिए तो,अपने धर्म में बना रहना है तो यह सब कीजिये नहीं तो मान लिया जायेगा आप उक्त उक्त धर्मों के नहीं हैं । यह ये सोशल साइट्स के लोग जो धर्म के तथाकथित प्रचारक हैं आपको आपके धर्म से वंचित कर देंगे आज स्तिथि यह है कि आपके सिद्धांत आदर्श सब थोथे हैं जो आपने धर्म-धर्म का खेल न खेला तो ।
इधर कुछ लोग हैं जो जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन करा रहे हैं। अब जब आप मेरा मन नहीं बदल सकते तो आप मेरा धर्म बदल कर क्या नौ की तेराह कर लोगे.. ? ओह धर्म की संख्या जो बढ़ानी है फलां-फलां धर्म के इतने अनुयायी .. जितने संख्या में अनुयायी उतना बड़ा धर्म क्यों यही न ?..मेरी राय में दूसरे के धर्म का अपमान करना दूसरे के धर्म को कमतर आंकना वो ही लोग करते हैं जिन्हें अपने धर्म का जरा भी इल्म नहीं है क्योंकि किसी भी धर्म में मानवता से बढ़कर कुछ भी नहीं माना गया .. बस हमारे हाथ में लेपटोप है मोबाइल है जेब में पैसा है नेटवर्क है सुविधा भोगी हम धर्म की बातें करते हैं ।ज्ञान का अजीण भी होता है कट्टरता का पेट भी फूलता है ।अल्लाह, राम,जीसस को कोसते,पोसते,खीजते,कुढ़ते इक्सीवी सदी का भी डेढ़ दशक जी लिया ।
हमें हमारे धर्मों की जितनी फ़िक्र है उतनी अगर आस-पास घट रही ,विपदाओं, आभावों से जूझ रही मानवता भूख से बिलखते परिवार,शिक्षा से वंचित बच्चे,छत से विहीन जिंदगियों की फ़िक्र हो जाये तो समझो बिना पढ़े ही हम अपने धर्म का मर्म समझ गए ।जिनके पास भर पेट रोटी नहीं मजदूरी उनका धर्म है ,जिनके पास घर नहीं जहाँ भी आसरा मिल जाए वो उसका धर्म है, ठण्ड में ठिठुरते भिखारी या बेघर को हिन्दू मुस्लिम किसी के द्वारा पहनने ओढने को मिल जाय वही उस क्षण उसका धर्म है, किसी घायल को जो खून देकर बचाले वही उसका धर्म है ,किसी भूखे को जो भरपेट भोजन खिलादे वही उसका धर्म है ..,धर्म से बड़ी आवश्यकता है .. आवश्यकता को इंसानियत पूरा करती है अत : इंसानियत से बड़ा धर्म क्या हो सकता है धर्म-धर्म का राग अलापते हुवे पड़ोसी मुल्क ने खुद की जो हालत करली वो किसी से छुपी नहीं है ।
अब उनके सांप उन्ही को निगल रहे हैं …उनकी कुल्हाड़ी उन्ही के पाँव काट रही है । आज पाकिस्तान हर देश की नजर में अपराधी है ।आंतकवादी है ..। धर्म की कट्टरता ने उन्हें इंसान ही नहीं रहने दिया । उसकी पहचान धूमिल हो रही है । उनकी इस दुर्दशा को देखते हुवे अब बारी है हमें अपने भी गिरेबान में झाँकने की आज हमारी भी कई संस्थाएं व उन्मादी लोग इस राह पर तेजी से चल निकले हैं धर्म के नाम पर कट्टरता सिखा रहे है.. धार्मिक उन्माद में अंधे होकर देश का विकास तो रोक ही रहे हैं नई पीढ़ी को भी गुमराह कर रहे है.. ।हम आज ना संभले तो कल हमारे देश में हमारे ही लोगों द्वारा हमारा यह हाल होगा अब चाहे सेक्युलर कह कर निकालों गलियां मुझे .. पर मैं किसी भी जाति धर्म देश में धर्म के नाम पर फैलाई जाने वाली कट्टरता व इस अंधेपन की भर्त्सना करती हूँ इस प्रवृति को पैशाचिक मानती हूँ .. सबसे बड़ा धर्म मानवता है उसें स्वीकार लो इस तबाही से बच जाओगे भारतीय धर्म का मूल मन्त्र मानवता है ।जिसने भारत का नैतिक कद इतना ऊंचा किया, जो विश्व धर्म में इतिहास में अनूठा है।
रामकृष्ण परमहंस जो कि भारत के महान संत एवं विचारक थे। इन्होंने भी सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया। स्वामी रामकृष्ण मानवता के पुजारी थे। साधना के फलस्वरूप वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि संसार के सभी धर्म सच्चे हैं और उनमें कोई भिन्नता नहीं। वे ईश्वर तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न साधन मात्र हैं।
बचपन में ही गुरू रामकृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर मानवता की सेवा में जुट गये स्वामी विवेकानंद ने केवल भारत को ही नहीं समूचे विश्व को धर्म व मानवता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने समूचा जीवन मानवता के विकास में बिताया।विवेकानंद जबवे लगभग 30 वर्ष के थे तब वह अमेरिका के शिकागो में आयोजित 1893 की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के तौर पर सम्मिलित हुए थे। उनके संबोधन ‘मेरे अमेरिकी भाइयों बहनों’ ने वहां उपस्थित सभी उपस्थित जन को मुग्ध कर दिया था। उनके संबोधन ने पश्चिम में भारत के बारे में एक नए नजरिए को स्थापित किया।विवेकानंद ने तत्कालीन समय में देश के स्वाभिमान को जगाया। विशेषकर देश के नौजवानों को देश की संस्कृति और मानवता से जुड़ने की प्रेरणा दी। साथ ही जो पश्चिम हमें बहुत से देवताओं में आस्था रखने वाला मानता था उसे बताया कि हकीकत में ईश्वर एक है और हम सब उसकी बराबर और समान संतानें हंै। इस सिद्धांत के साथ भारत के दर्शन को उन्होंने विश्वपटल पर स्थापित किया।’’ शिकागो में उन्होंने अपने भाषण में हिंदू धर्म को आत्मसात करने वाला बताया था। यहूदियों को उनके देश से निकाले जाने के बाद किस तरह भारत ने उन्हें अपनाया इसका जिक्र भी उन्होंने महासभा में दिए भाषण में किया था।
पर आज हम अपने ही धर्म का मखोल उड़ाने में लगे हैं न उसको पढ़ा न समझा न आत्मसात किया चल पड़े उसका झंडा उठा कर अगर सही अर्थों में आप अपने धर्म को विश्व समुदाय के सामने रखना चाहते हो, उसकी महता बताना चाहते हो तो उसको पढो समझो खुद आत्मसात करो उसके दुर्गुणों को छोड़ कर गुणों को अपनों क्योंकि धर्म भी समय समाज सभ्यता के साथ अपने माने बदलता है .. धर्म से बड़ा राष्ट्र होता है राष्ट्र से भी बड़ी मानवता .. उसको तो बिसरा ही दिया इन दिनों हम सबने।
आशा पाण्डेय ओझा
बहुत अच्छा और विचारणीय लेख. आपने धर्म के धंधेबाजों की अच्छी खबर ली है. गोस्वामी तुलसी दास जी ने धर्मं के ऐसे धंधेबाजों के प्रति बहुत पहले ही सावधान किया था. अब उनकी भविष्यवाणी सत्य हो गयी है.
बहुत बहुत शुक्रिया आदर्णीय विजय कुमार जी आज हैवानियत के मेले में मानवता छटपटा रही है .. धर्म के नाम पर झूठा ढिंढोरा पीटा जा रहा है