शिशुगीत

शिशुगीत – 1

१. बंदर

नटखट होता है बंदर
उछले-कूदे इधर-उधर
धूम मचा दे रस्ते में
हँसी दिला दे सस्ते में
खाता है रोटी, केले
गुलदाने, गुड़ के ढेले

२. भालू

भालू मोटा, ताकतवर
देख इसे लगता है डर
मधु खा के हो जाता खुश
जंगल में घूमे दिनभर

३. शेर

पीला-पीला राजा वन का
लंबे, भारी-भरकम तन का
चले शान से शीश उठा के
काम करे नित अपने मन का

४. बाघ

दुर्गामाता करें सवारी
सिंहराजा का जोड़ीदार
अपने भारत का प्रतीक भी
नहीं चूकते इसके वार

५. हाथी

मद से घूमे हो मतवाला
भीमकाय ये काला-काला
सूप समान कान दो प्यारे
सूँड़, दाँत में लगे निराला

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

One thought on “शिशुगीत – 1

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे और सरल शिशु गीत ! बधाई !!

Comments are closed.