कविता

हाइकु- घट/घड़ा/गगरी

पाप का घड़ा,
सम्पूर्ण जब भरा,
फूट ही पड़ा।

अधूरी भरी,
छलकती जरूर,
जल गगरी(घड़ा)।

बालकमन,
कच्चा घड़ा समान,
सच्चा निर्माण।

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

One thought on “हाइकु- घट/घड़ा/गगरी

  • विजय कुमार सिंघल

    ठीक हैं !

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