हास्य-व्यंग्य : आस्तीन के सांप
मुझे एक बात समझ में नहीं आई. ये जो आस्तीन के सांप होते हैं उनका आकार कितना होता है … ? ऐसा इसलिए पूछ रही हूँ क्योंकि आजकल आस्तीन बहुत छोटी- छोटी सी होती है, बल्कि नाम रह गया आस्तीनों का।आस्तीन के नाम पे अक्सर हम महिलाओं की पोशाकों पर एक छोटा सा छज्जा मिलता है.. या तो दरजी लालची हो गया या हम किफ़ायती। बाजार में आजकल कपड़े खरीदने जाओ तो 70% तो बिना आस्तीन के मिलते हैं,और जो थोड़े बहुत आस्तीन के मिलते हैं भी हैं तो मुश्किल से दो से चार इंच के बीच की आस्तीन नाम की एक निशानी मिलती है। पुरुषों के फिर भी थोड़ी बहुत दया है इस मामले में बाजार वालों की कहो या दरजी बाबजी की, समझो अभी 8/10 इंच की आस्तीन उन्हें नसीब होती है ..मतलब संस्कारों को बचाने में पुरुष इन दिनों महिलाओं से आगे है।
मैं बहुत मुश्किलों के दौर से गुजरती हूँ जब-जब आस्तीन युक्त कपड़ों की कामना करती हूँ ।जब मैं दरजी को अपने कपड़ों पर 8 इंच की आस्तीन बोलती हूँ तो मुझे ऐसे घूरता है जैसे मेरे जैसा विचित्र प्राणी उसने बहुत बरसों बाद देखा है। वो गुस्से में आँखे भी तरेरता है । शायद मेरी इस गुस्ताखी से उसके शेष बचने वाले कपड़े में में घाटा लग रहा है,जो मुझे लगाने का कोई अधिकार नहीं है,या फिर फैशन बाजार के कानून का उलंघन कर रही हूँ। बात तो तब और बिगड़ी जब-जब मैंने 15 इंच की आस्तीन कहा जो मैं पटियाला सूट के साथ बहरा पहनती हूँ तब तो उसने लगभग मुझे झपट लेने की स्तिथि में दुत्कारा और कहा किस दुनिया में रहते हो ?.. जबकि दरजी के रजिस्टर में मेरा पता बार-बार दर्ज होता रहा है मेरा ..हर नई ड्रेस की सिलाई के साथ,क्या कहूं मैं जानता है किस दुनिया में रहती हूँ पर फिर भी तड़क कर पूछता है तो मैं निरुत्तर हो जाती हूँ।
कई बार तो मेरे बार-बार अनुरोध पर भी दरजी ने 8 की जगह चार इंच की आस्तीन बनाई है .. मतलब वो अपने दरजी होने का व वर्तमान फैशन-जायेका का विशेषज्ञ होने के नाते मेरी बात को काटने का सर्व सुरक्षित आधिकार रखता है.मैंने कई बार लड़ाई की पर वो न सुधरा, कहने लगा कहीं और सिलवा लो… ! मैं नहीं सिलता.. ।बिना फैशन के कपड़े सिलने से मेरा नाम खराब होता है मेरी रेपुटेशन डाउन होती है ..आपकी आस्तीनों की उम्मीद की खातिर मैं अपनी साख खराब नहीं कर सकता कल को आपको पहने देखकर दस लोग पूछेंगे किसने सिले ?.. मेरा नाम बताने पर मेरे पास नए ग्राहक आने की बजाय मेरे पुराने ग्राहक भी कम हो जायेंगे… वो दस,दस और को कहेंगे इस तरह में बदनाम हो जाऊंगा .. मैं नहीं सिलता आपके कपड़े.. !
मैं अपना सा मुंह लेकर रह जाती हूँ करूं भी क्या ? और कोई चारा भी तो नहीं मेरे पास .. बाजार से लाऊँ तो घर पर सिलवाने से तिगुने दाम के पड़ते है फिर उनमे तो आस्तीन का निशान ही तो मिलता है लगता है कभी यंहा आस्तीन हुआ करती थी जो किसी करणवश अदृश्य हो गई .. इन दिनों विलुप्त होते जानवरों की सरकार बड़ी चिंता करती है बड़े बजट पास कर रही है उनको बचाने वाली संस्थाओं के लिए… मन किया की सरकार से ही दरख्वास्त करूं की आस्तीन अगर बचाने का प्रयास किया जाये तो सांप बच सकते हैं । जरा बजट आस्तीन के नाम पर भी पास करवा लूं .. वेसे भी तो कई कामों के लिए बजट बनवाए गए पास भी हुवे एक बजट हमारी सहृदय सरकार द्वारा आस्तीन के नाम पर भी तो हो ताकि दरजी को कपड़े सिलवाते वक़्त उस बजट से एक चेक आस्तीन के नाम का दे दिया जाय और दरजी आस्तीन काटने की बजाय बचाने लगे .. ।
नहीं तो सचमुच आस्तीन के नाम पर जो निशानियाँ कभी कभार नजर आ जाती है वो भी नहीं दिखेंगी और कहाँ रहेंगे आस्तीन के सांप ? बेघर हुवे आस्तीन के साँपों को भी अपने पुनर्वास की गुहार लगानी चाहिए सरकार से और सरकार को तो सांप दिखने से मतलब होना चाहिए जब असली सांप न दिखेंगे तो कम से कम बच्चों को आस्तीन के सांप ही दिखा दिए जायेंगे यह कहकर कि वो सांप शक्ल से अलग थे पर आचरण ऐसा हुआ करता था .. और शक्ल में रखा ही क्या है पहचान तो गुणों से हुआ करती है .. । पर जब अपने स्वार्थ के बारे में सोचा तो दिमाग को आराम आया मन को समझाया बावरे मन अच्छा ही है छोटी आस्तीन होने पर आस्तीन के सांप को अंदर छुपने पनपने का मोका नहीं मिलेगा क्या हुआ जो दरजी तेरा थोड़ा कपड़ा खा जाता है उसमें उसका फायदा तो है पर नुकसान तेरा भी क्या है ?सोच आस्तीन के सांप कितना नुकसान करते हैं आपके तन-मन धन का .. आप न पूर्ण रूप से जी सकते हो .. न पूर्ण रूप से मुक्ति .. इन साँपों का काटे मनुष्य कोमा के मरीज की तरह संज्ञा शून्य हो जाते हैं ?
आजकल आस्तीन में छुपने वाले सांप आपके बहुत निकट स्नेही व अपने होते हैं बल्कि रिश्तेदार ही .. जिन्हे आप जानते तो हैं पर पहचानते नहीं ..इन साँपों के लिए दूध .. ठंडी बालू मिट्टी .. इत्र.पुष्प कुछ भी रख दीजिये पर यह आपको आशीष देनें की बजाय आपको काटेंगे .. खुद शाकाहारी हो और ना काट पाए तो काटने के लिए किराये पर अन्य साँपों को बुलाएँगे। एक खासियत और है इन साँपों की आस्तीन चाहे कितनी भी छोटी हो, या न हो उनको छुपना खूब आता है, पनपना खूब आता है ..छुप कर काटते भी इतना खतनाक है, की पानी मांगने की मौहलत नहीं मिलती ..जंगल के सांप का काटा तो फिर भी बच जाया पर आस्तीन के सांप का काटा बच पाने की कोई संभावना नहीं होती ये सांप जरा सभ्य होते हैं न ! और सभ्य लोग जब औकात पर उतरते हैं तब आप भी जानते हो किस हद तक उतरते हैं। बरसों पहले अज्ञेय जी सांप से पूछते हैं “सांप तुम सभ्य कैसे हो गए कहाँ सीखा डसना ?’ मुझे इतने बरसों बाद अज्ञेय जी के प्रश्न का जो जवाब सूझा वो यह है आस्तीन में रहकर सभ्य हुआ होगा, इंसानी पसीने को सूंघ कर हुआ होगा जहरीला, उसी से सीखा होगा डसना।
आशा पाण्डेय ओझा
एक खासियत और है इन साँपों की आस्तीन चाहे कितनी भी छोटी हो, या न हो उनको छुपना खूब आता है, पनपना खूब आता है ..छुप कर काटते भी इतना खतनाक है, की पानी मांगने की मौहलत नहीं मिलती ..bahut khub
एक और करारा व्यंग्य ! बहुत खूब !!