कविता

गीत : बदलाव..

बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा।
कभी आंसू कभी ये खून का, सैलाब मांगेगा।
मेरे चलने से ही सूरत पे मेरी, है चमक देखो,
अगर मैं थम गया तो, वक़्त ये ठहराव मांगेगा।

नये इस दौर में, चाहत, वफ़ा बेमोल लगती है।
तमाशा देखते हैं सब, जो मेरी आँख दुखती है।
किसी से दर्द बांटो तो, मिले उपहास का तोहफा,
यहाँ सब तापते हैं, जो मेरे घर आग लगती है।

दवा मिलती नहीं, मरहम भले हर घाव मांगेगा।
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा…

यहाँ पैसों की बातें हों, दिलों को कौन चुनता है।
यहाँ सब हो गए बहरे, मेरा गम कौन सुनता है।
कहुँ क्या “देव” कुछ कहने को, वाकी है नहीं अब कुछ,
जिसे अपना कहा फांसी का फंदा, वो ही बुनता है।

जिसे भी देखो वो खुद के लिए, रुआब मांगेगा।
बदलते दौर का रिश्ता है ये, बदलाव मांगेगा। ”

— चेतन रामकिशन “देव”

2 thoughts on “गीत : बदलाव..

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा गीत !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सच्चे लोग, सच्चे, दोस्त, बस गुम से हो गए हैं . पंजाबी में गाना है , दुनीआं मतलब दी , इथे कोई ना किसे दा बेली .

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