मौसम के बहाने
आज फिर
छाया है घना कोहरा
साथ में बूंदा बांदी
एक नीम तो दुजा करेला
गले में मफलर कसके लपटते हुए
अनमने मन से
बुदबुदाते हैं बाबूजी—
अधिक ठंड से निबटने के लिए
ओसारे में
आज फिर सुलगेगी बोरसी
घेर कर सब बैठ जाएंगे
खुलेगी यादों की पोट्ली
देर रात तक
हंसी कहकहों का
दौर चलेगा
पुरानी बातें
फिर दोहराई जाएगी
पुराना जमाना और खान पान
ज्यादा अच्छा था
मां की इस बात पर
काकी भी सह्मती मिलाएंगी
बच्चों की जिद्द पर
बाबूजी पच्चीस साल पुरानी
इमली के पेड़ पर
रहने वाले भुतों की
कहानी सुनाएंगे
धिमी आंच पर
पकती लिट्टी की सोंधी महक
और गोंद के लड्डू
उदास चेहरों पर
मुस्कान लौटाएगी
मां–
दुल्हन भौजी के माथे पर
स्नेह से हाथ रखकर
कहेगी—– सीख लो
अब तुम पारंपरिक भोजन बनाना
मेरे बाद तुम्हे ही है
सब सम्हाना, सुनकर
हम सब की आंखें
भर आएगी
भाग दौड़ भरी जीवन में
सबके जज़्बात हरे होंगे
मौसम के बहाने
एक बार फिर
हंसी – खुशी के पल
लौट आएंगे—— !!
**भावना सिन्हा**
nice poem
thanx
waah sundar srijan
shukriya
क्या खूब बयाँ किया है ….एक और सर्दी की शाम
हार्दिक शुक्रिया
अच्छी कविता.
आभार सर विजय कुमार सिंघल जी