विजय जी शे’र है तो मतलब इसमें मुकम्मल होना चाहिए लेकिन थोड़ा सा हट के है …मैं अपने से कह रहा हूँ की वहीं उडान भरना जहाँ मेरी प्रेमिका के पद चिन्ह हों और अगर हट के उड़ना है तो संभल के… जब आसमान ही नहीं तो उड़ कैसे पाओगे ..जमीं पे गिर जायोगे
अच्छी कविता है, लेकिन बात कुछ स्पष्ट नहीं हो पायी.
विजय जी शे’र है तो मतलब इसमें मुकम्मल होना चाहिए लेकिन थोड़ा सा हट के है …मैं अपने से कह रहा हूँ की वहीं उडान भरना जहाँ मेरी प्रेमिका के पद चिन्ह हों और अगर हट के उड़ना है तो संभल के… जब आसमान ही नहीं तो उड़ कैसे पाओगे ..जमीं पे गिर जायोगे
अच्छी कविता है, लेकिन बात कुछ स्पष्ट नहीं हो पायी.