शिशुगीत

शिशुगीत – 4

१. तोता

मिर्ची खाना इसका काम

जपता रहता “सीताराम”

हरा शरीर लाल है चोंच

हमने रखा मिठ्ठू नाम

 

२. कौआ

काला-काला, काँव-काँव

दिखता रहता मेरे गाँव

मैना से करता झगड़ा

खाता रोटी का टुकड़ा

 

३. कार

हमको गोद बिठाती है

पिकनिकपर ले जाती है

साएँ-साएँ चल-चलकर

सारे शहर घुमाती है

 

४. बाइक

ब्रूम-ब्रूमकर होती स्टार्ट

व्हीं-व्हींकर चलती है

सड़कोंपर आसानी से

बीचोंबीच निकलती है

पापा ऑफिस को जाते

स्कूल मुझे भी पहुँचाते

कितना पेट्रोल पीती है

मोबिल खाकर जीती है

 

५. फ्रिज

ठंढा-ठंढा, कूल-कूल

आइसक्रीम जमाता है

मम्मी दूध, सब्जियाँ रखती

ताजा उन्हें बचाता है

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

2 thoughts on “शिशुगीत – 4

  • Man Mohan Kumar Arya

    मन को भाने वाली सुन्दर बाल कविताये। बधाई।

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे शिशु गीत !

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