कविता जीवन के ज़ानिब से मनोज 'मौन' 18/01/201518/01/2015 जीवन के ज़ानिब से सच का सामना आसां तो नहीं मौत का दामन सुर्ख सा इन्सान बेपरवाह फिर भी अश्क के समन्दर में भी खिलखिलाहट लिए फिरता है| मौन दरख्त पर पंख फैलाए हुए परिन्दे खोखले दरख्तों में घर किए बैठे हैं| जीवन की पहेली आसां सी बस अपना डेरा दूर कहीं बनाना तो सही लोगों का जमघट लग जाएगे|
बहुत खूब .
गुरमेल जी धन्यवाद
अच्छी कविता !
विजय जी धन्यवाद