कविता

बालगीत- आरती

आरती

घर में सबकी बड़ी दुलारी
नन्ही बिटिया आरती ।

अम्माजी का हाथ बंटाती,
कभी काम से ना घबराती
चौका-बर्तन करे, और घर-
अंगना रोज़ बुहारती ।

थके, खेत से बापू आते,
तुरन्त खाट पर हैं पड़ जाते
पैर दबाकर बिटिया उनकी
सारी थकन उतारती ।

बात किसी की नही काटती,
दिनभर घर में ख़ुशी बांटती
आओ दादी कंघी कर दूं
बिटिया रोज़ पुकारती ।

चश्मा कर दे दादा का गुम,
खींच के भागे गैया की दुम
सूरत-सीरत सबमें अच्छी
पर है ज़रा शरारती ।
                       – शादाब आलम

2 thoughts on “बालगीत- आरती

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी लगी , बच्चों से जो पियार मिलता है उस से बड़ों की सारी थकान दूर हो जाती है.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी बाल कविता. बधाई !

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