रंगो मे बसी जिंदगी
“अरे बहू तुमने ये बेंरगी साङी क्यूं पहनी है ? यह रंग तुम पर जंचता ही नही. जाओ इसे बदल कर आओ।”
“नही मांजी, सारे मुहल्ले वाले, रिश्तेदार बाते करते है इनको गुजरे अभी छ: महिने ही हुऐ है । आपका कहना मान मैं रंग बिंरगे रंग पहन रही थी पर हर कोई मुझे घूर घूर कर देखता है और तरह तरह की बाते करता है मुझे अच्छा नही लगता।” उदास सी होती कान्ता बहन की बहू बोली।
अभी दो साल ही तो हुऐ थे उनके बेटे की शादी को पर कुदरत का कहर ऐसा टूटा कि एक रोड एक्सिडेंट मे उनका बेटा चल बसा।अपनी बहू को सदा उन्होंने बेटी की तरह रखा था मगर एक सास के रुबाब के साथ । पर उन्होंने हालात से समझोता कर अपनी बहू को हर उस रंग से जोङा रखा जो हमारे समाज मे किसी विधवा के लिये जैसे पांबदी है।
उसी दिन शाम को मुहल्ले की सारी औरते ,कुछ रिश्तेदार उनके घर पर थे जिन्हें खास फोन करके कान्ता देवी ने बुलाया था कोई जरुरी बात करने के लिये। सभी एकदुसरे को बुलाने की वजह पूछे जा रहै थे ।
तभी कान्ता देवी ने सबका अभिवादन करते हुआ बोला- “आप सभी शायद यही सोच रहे होंगे कि मैंने आप सभी को एकसाथ क्यूं बुलाया है ? घूमा फिरा कर कुछ कहना नही चाहती सीधी मुद्दे की बात है.. मेरा बेटा गया है, जिसका मुझे और मेरी बहू को जितना दुख है उतना किसी को नही उस अनहोनी पर हम कुछ नही कर सकते किंतु इसका मतलब ये नही कि मेरी बहू की जिंदगी से सारे रंग ही गायब हो जाये। उसे तो अभी सारी उम्र निकालनी बाकि है ।पहले से ही बेंरग हो रखी इसकी जिंदगी और नीरस मत बनाईये।जब मुझे इसके हर रंग पहनने से कोई आपत्ति नही तो आप सब क्यूं इसे मुद्दा बनाते हो।मैं नही चाहती इसकी जिंदगी कुछ ही रंगो तक सिमटी रहै। माफ किजियेगा ना ही मै अपने परिवार का ये निर्णय करने को किसी को अधिकार दूंगी इसलिये कृपया आगे से मेरी बहू को देखकर कोई कानाफूसी नही करेगा। आप सभी से भी इस स्नैहिल प्रयास की आशा रखती हू.”
कहकर कान्ता देवी ने अपने दोनो हाथ जोङ दिये। सब अवाक थेऔर उनकी बहू कृतज्ञ आंखों से अपनी सास मे छिपे इस मां के रुप को देखे जा रही थी
बहुत अच्छी बात कही आपने इस लघु कथा के माध्यम से।
इस लघु कथा में बहुत अछे विचार पेश किये .
काश, ऐसी अच्छी सोच वाले लोग समाज में हो।
अच्छी लघुकथा.