ग़ज़ल
इश्क में इन्कलाब होने दो।
सारा चेहरा गुलाब होने दो।।
बंदिशें टूट गयी हैं साकी ।
पूरी महफ़िल शराब होने दो।।
इतनी फितरत है क्यूं सवालो में।
तश्नगी बे हिसाब होने दो ।।
अब तो तौहीने मुहब्बत न करो।
सुर्खियों पर शबाब होने दो ।।
नज़र का खत वो पढ़ गयी जब से।
उन खतों का जबाब होने दो।।
निगाह लौट के आ जायेगी ।
हुश्ने दामन नकाब होने दो ।।
दुआ करोगे नीद आने की ।
उसे खुशबू ए ख्वाब होने दो।।
गैर मुमकिन है अर्ज माने वो ।
उसको मन का नबाब होने दो।।
मौजे साहिल से कह गईं देखो ।
रात फिर से जनाब होने दो।।
मौत बोली रुआब में हमसे ।
थोड़ी किस्मत ख़राब होने दो।।
– नवीन मणि त्रिपाठी
ग़ज़ल बहुत मजेदार लगी .
एक और बहुत सुंदर ग़ज़ल!