गीत – बसंत
बसन्ती रूप निराला देख , मचाता पागल मनवा शोर ।
मोर के पंखों जैसी छटा , दिखाती सुंदर जग की भोर ।|
हिमानी शीत गयी है बीत ,
बहे अब सुरभित मंद बयार
मचाती तन-मन में हलचल,
गिराती संकोची दीवार ।
उठो देखो ये मधुमय मास , उमंगों की जो बांधे डोर |
बसन्ती रूप निराला देख, मचाता पागल मनवा शोर ।|
खेलती मधुऋतु कैसा खेल,
मचाती अंग- अंग में रार,
प्रकृति का रोम रोम रचता
नये पुष्पों की एक संसार |
करे मधुकर अब नवनिर्माण , मधुकरी खींचे अपनी ओर |
बसन्ती रूप निराला देख , मचाता पागल मनवा शोर ।|
— सुरेखा शर्मा
बेहतरीन गीत !