दोहे
१.
सटे-सटे से घर यहाँ, कटे-कटे से लोग।
त्रासदी ये शहरों की, लोग रहे हैं भोग॥
२.
धरा-गगन-पानी-हवा, ईश्वर के उपहार।
साँस-साँस में वो बसा, मत छीनो अधिकार॥
३.
ख्वाबों की ताबीर ये, छोटा-सा संसार।
महके फुलवारी सदा, चहकें ख़ुशियाँ द्वार॥
४.
नारी तुम संवेदना, ममतामयी अनूप।
रिमझिम बरखा नेह की, जीवन तपती धूप॥
५.
तू ही तू मुझमें रहे, ओ मेरे चितचोर।
बंधी नेह की डोर से, जिसका ओर न छोर॥
६.
खींच रहा है कौन ये, मुझे बिना ही डोर।
मन पंछी हो उड़ चला, बस तेरी ही ओर॥
७.
क्या दिल्ली क्या लखनऊ, शहर-गाँव-देहात।
करमजली के भाग में, उत्पीड़न-आघात॥
८.
शिला अहिल्या ही बनी, किया इंद्र ने पाप।
गौतम ने भी दे दिया, निष्पापी को शाप॥
९.
सोचा था आकाश में, ऊँची भरे उड़ान।
झपट लिया फिर बाज़ ने, चिड़िया लहूलुहान॥
१०.
चाहत में जीती रही, चाहत में दी जान।
दुनिया ने बस ये कहा, पगली थी नादान॥
११.
खुशबू तेरी बात की, सरहद से जब आय।
मन जो मेरा झील-सा, निर्झर-सा हो जाय॥
बहुत अच्छे दोहे !