कविता

“अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो”

 

रह-रह कानों में
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द
“अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो”।

ज़हन में
देती हैं दस्तक
घुटी-घुटी आहें
चीखें, कराहें
बिटिया होना
दिल दहलाने लगा है
अनजाने ख़ौफ़
दिल पालने लगा है
मर्दाने चेहरे
दहशत होने लगे हैं
उजाले भी
अँधेरों-से डसने लगे हैं !

बेबस से पिता
घबराई-सी माँ
कब हो जाए हादसा
न जाने कहाँ !

कुम्हला रही हैं
खिलने से पहले
झर रही हैं
बौराने से पहले
रौंद रहे हैं
इंसानी दरिंदे
काँपती हैं
ज्यों परिंदे

 

 
अहसासात

मर गए हैं
बेटियों के सगे
डर गए हैं।

उठ जाते हैं हाथ
काँपते – से दुआ में –
“अगले जनम मोहे बिटिया न दीजो”।

सुशीला शिवराण

परिचय : सुशीला शिवराण जन्म : २८ नवंबर १९६५ (झुंझुनू , राजस्थान) शिक्षा : बी.कॉम.,दिल्ली विश्व विद्याीलय, एम. ए. (अंग्रेज़ी) राजस्थान विश्वषविद्या लय, बी.एड., मुंबई विश्वाविद्याbलय । पेशा : अध्यापन। पिछले बाईस वर्षों से मुंबई, कोचीन, पिलानी,राजस्थान और दिल्ली में शिक्षण। वर्तमान समय में गुड़गाँव में शिक्षणरत। रुचि : हिन्दी साहित्य, कविता पठन और लेखन में विशेष रुचि। स्वरचित कविताएँ कई पत्र-पत्रिकाओं – हरियाणा साहित्य अकादमी की ‘हरिगंधा’, अभिव्यक्तिम–अनुभूति, नव्या, अपनी माटी, सिंपली जयपुर, कनाडा से निकलने वाली ‘हिंदी चेतना’, नेपाल से निकलने वाली ‘नेवा’ सृजनगाथा.कॉम, आखर कलश, राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की बीकानेर की जागती जोत, हाइकु दर्पण, दैनिक जागरण और अमेरिका में प्रकाशित समाचार पत्र ‘यादें’ में प्रकाशित। हाइकु, ताँका और सेदोका संग्रहों में भी रचनाएँ प्रकाशित। हरेराम समीप जी द्वाररा संपादित दोहा कोश में दोहे प्रकाशित। नेपाल से निकलने वाली ‘शब्द संयोजन’ में कविताएँ नेपाली भाषा में अनूदित और प्रकाशित जयपुर लिटरेचर फ़ेस्टिवल एवं बीकानेर साहित्य एवं कला उत्सव में एक रचनाकार के रुप में काव्यपठ तथा वक्तरव्य। ऑल इंडिया रेडियो पर अनेक बार कविता पाठ, दूरदर्शन पर दोहा-गोष्ठीव में दोहों का वाचन २३ मई २०११ से ब्लॉगिंग में सक्रिय। मेरे चिट्ठेद (वीथी) का लिंक – www.sushilashivran.blogspot.in इसके अतिरिक्तn खेल और भ्रमण प्रिय। वॉलीबाल में दिल्ली राज्य और दिल्ली विश्वपविद्या लय का प्रतिनिधित्व।

3 thoughts on ““अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो”

  • प्रवीन मलिक

    बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति …

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    जब जब ऐसी कविता या कोई लेख पड़ता हूँ तो औरत के साथ बेइंसाफी बहुत दुःख पौह्न्चाती है . मुझे किसी और देश का तो पता नहीं यहाँ औरत के साथ इतना धक्का होता है लेकिन भारत में जो होता है उस को तो देखता ही हूँ .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत मार्मिक कविता.

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