चलो रूह को फूंक आते हैं……..
दुनिया की हर चाल में
रूह तंग करती है
सवाल पे सवाल पूछ
मुझे परेशान करती है
हर कदम रूह की
सलाह पे चलता हूँ
तभी तो सिर्फ़ हार ही मिलती है
रूह के कान बड़े तेज होते हैं
हर बात मुझ से पहले सुन लेती है
शतरंज की हर चाल
नैतिकता दिखा बदल देती है
गलती ये है मेरी कि
मैं इसकी सुनता हूँ
इसलिए नैया आज भी
मझधार में ही अड़ी मिलती है
वैसे तो होलिका दहन होता है
मगर ज़माना आज उल्टा है
लोग तो खुद से छिपा के रूह दफना आते हैं
चलो आज हम भी रूह फूंक आते हैं
होलिका को बचा लाते हैं
चलो आज रूह का खून कर आते हैं
शतरंज की बाजी में
एक नयी चाल चल आते हैं
……..इंतज़ार
गंभीर सोच वाली कविता.
वाह वाह ! गहरा अर्थ लिये हुए एक रोचक कविता !