कविता

नयी सृष्टी की संरचना

जाडे की, ठिठुरती रातों में
तुम्हारा, स्नेहिल स्पर्श ,
मानो तन​,मन में, ऊर्जा सी,
प्रवाहित, हो उठती है!
तुम्हारे हाथों की, तपिश पाकर​,
पिघलने, लगती हूँ!
खुद ही खुद से, दूर होती हूँ में ,
जब अपना अस्तित्व, तुममें,
विलीन होते, देखती हूँ!
न जाने कैसा, सम्मोहन है तुममें,
भूल जाती हूँ,सुध बुध ,
तुममें ही, खुद को, जीती हूँ में!
भूल जाती हूं सारी पीडायें, दर्द​,
आँखों से पिघल , बह निकलती है!
तुम्हारा प्यार, मुझे ,
मुझसे ही, मिलवाता है!
भागती, दौड़ती  जिंदगी में,
बहुत कुछ छूट गया है!
तुम्हारा प्यार​,एहसास देता है ,
संबधों की गरिमा का!
कुछ रिश्ते पूरक होते है,
एक के बिना, दूजे का अस्तित्व​,
जैसे बिन बारिश के धरती!
बारिश की बूँदों से जैसे,
खिल उठती है धरा,
तुम्हारा प्यार पाकर खिल उठा है,
जीवन मेरा !
सोयी उम्मीदें, अँगडाई लेकर ,
जाग उठी है!
वक़्त का हर लम्हाँ, ठहर गया है,
बीते पलों का हिसाब चुकाने!
काश कि वक्त यहीं थम जायें,
ओर हम तुम लिखें,एक कहानी!
मनु की तरह​,
सृष्टी में प्यार के, जीवंत होने की!
जहाँ हर तरफ़ प्यार का ही,
साम्राज्य हो!
नफ़रत के आख़िरी, बीज तक को,
हम नष्ट कर दें!
आने वाली पीढियों में,
महके सिर्फ़ प्यार​!
अंत हो धरा से हिंसा,मारकाट​,
अत्याचार​,व्यभिचार​!
हर तरफ़ प्यार की फ़सलें लहलहायें,
आने वाली नस्लें न एक दूजे का,
रक्त बहायें!
हमारी नन्हीं सी जानें, रहें सुरक्षित ,
माँओं की आँखें,न कभी नीर बहायें,
माँ धरा की गोद में,
सुख का सागर लहराये!
चलो हम तुम मिल,
नयी सृष्टी की संरचना करें!
धरती माँ थक गयी है,सहते-सहते ,अत्याचार​,अनाचार​,नहीं
देखी जाती उससे ,अपनी ही संतानों की बदहाली,खून​-खराबा,हिसा !जागो सब कुछ तबाह हो उससे पहले——
सुनो धरती माँ की करूण पुकार​!हरी भरी धरा हरी ही रहे,न रक्त- रंजित हो! क्यों प्यार पर मज़हब के पहरे लगाते हो, क्यों जन्म देते हो नफ़रत को! प्यार के इन परिंदो चुनने दो उनका आसमान , भरने दो खुले गगन में उडान​! फ़लने-फ़ूलने दो मानवता को ! जहाँ बोयें ये इन्सानियत की फ़सलें, धरती फ़िर उगले सोना, अपने सपनो का भारत ले आकार​……..आओ हम तुम मिल नयी सृष्टि की संरचना करें!
राधा श्रोत्रिय​ ”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

3 thoughts on “नयी सृष्टी की संरचना

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार कविता ! वाह !!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत सुन्दर रचना है.

  • उपासना सियाग

    वाह , बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना

Comments are closed.