सड़क पर भविष्य
कचरे का ढेर
ढेर पर बच्चे
जूठन बीनते
नज़रें चुरा निगलते
देखा है अक्सर इन में
भविष्य भारत का मैंने ।
भारत का वर्तमान
दौड़ता है सरपट
फ़ेरारियो में
बढ़ जाता है आगे
लाद कर जिम्मेदारियाँ
ज्ञात-अज्ञात
रोकती हैं लाल बत्तियाँ
चौक-चौराहे, गली मुहाने
आ ही जाती हैं याचनाएँ
पसर जाते हैं हाथ
खीजता-सा वर्तमान
चढ़ा लेता है शीशे ऊपर
ऊपर-और ऊपर
मानो ढक दिया है उसने
भविष्य भारत का !
वर्तमान देखता है
मनचाही तस्वीर-
खटते मासूम बच्चे
पत्थर तोड़ते कोमल हाथ
बोझा ढोते कमज़ोर कंधे
चूड़ी-बीड़ी के कारखानों में
कुम्हलाया मासूम बचपन
विकासशील विशाल अट्टालिकाएँ
बेखौफ़ पालती हैं
बंधुआ मज़दूर
बीन कर बचपन !
होते ही हरी बत्ती
निकल जाता है
दौड़ता वर्तमान
रह जाता है निपट अकेला
सड़क पर भविष्य
खोल कर आँखें
पूछता है उसका बचपन
कब दोगे मुझे
मेरी आज़ादी?
उसके कानों में
गूँजते हैं कुछ शब्द
मेरा भी होगा
कल खुला आसमान
बताती थी दादी !
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बहुत ख़ूब !
पारखी नजर सड़क की …..वाह!