गीत
मौसम -मौसम दुरभिसंधियां, पवन-पवन वैराग है।
फागुन- फागुन पानी है, सावन – सावन आग है।
ताल तलैया बूँद बुलाये, नंगी नदी होंठ पथराये,
सोये सोये झरने सारे, कालकलौती झील मनाये,
कैसा कुम्भ, कहाँ का संगम, प्यासा खड़ा प्रयाग है।
कचनारों के आँगन कांटे, बेर बबूल बताशें बांटें,
निशि दिन नागफनी के उत्सव, जुही मालती घर सन्नाटे,
जाने किस माली की रखवाली में अपना बाग है।
चौतरफा नक्सली हवाएं, इत उत पाग…ल सी लहराएँ,
सुमनों के सुरभित सौरभ पर, बारूदों की गंध उड़ायें,
सबकी अपनी- अपनी ढपली, अपना-अपना राग है।
उच्च कोटि की रचना है | अति सुंदर , भाव पूर्ण | बधाई |
बहुत शानदार गीत !